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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. ३ सू० ३७ शय्येपणाध्ययननिरूपणम् ४२९ वा 'दुब्बद्धे' दुर्बद्धम् शिथिलबन्धम् 'दुभिविखते' दुर्निक्षिप्तम् न सम्यक्तया स्थापितम् 'अणिकंपे' अनिष्कम्पम् सकम्पम् 'चलाचले' चलाचलम् विचलितम् भवेद्, अथ च 'मिक्खू य' भिक्षु संयमवान् भिक्षुः 'राओ वा' रात्रौ वा 'वियाले वा' विकाले वा 'निक्खममाणे वा' निष्क्रामन् वा 'पविमाणे वा' प्रविशन् वा 'पयलिज्ज वा पवडेज्ज वा' प्रस्खलेद् वा प्रपतेद् वा 'सेतत्थ पलेमाणे वा पवडेमाणे वा' स साधुः तत्र प्रस्खलन वा प्रपतन् वा 'इत्यं पाव' हस्तं वा पादं वा 'लुसिज्ज वा' लूपयेद् वा त्रोटयेद्, 'पाणाणि वा भूयाणि वा ' प्राणिनो वा भूतानि वा 'जीवाणि वा सत्ताणि वा' जीवान् वा सत्वानि वा 'जाव ववशेविज्ज यावद् व्यपरोपयेद् वा विनाशयेद् वा, 'अह भिक्खुणं पुव्वोवदिट्ठ अथ भिक्षूणां पूर्वोपदिष्टं या' पर्दा - यवनिका होगी या 'चम्मएवा' या मृगचर्म होगा या चम्मकोस ए वा ' चर्मकोश मृगचर्म पुटक होगा या 'चम्मल्लेपणए वा' चर्मछेदन होगा या ये सभी छाते वगैरह 'दुबद्धे' अच्छी तरह उस उपाश्रय में बन्धे हुए नहीं होगे तथा 'दुनिखते' अच्छी तरह नहीं रक्खे होंगे और 'अणिकंपे' निष्कम्प भी नहीं होंगे तथा 'चलाचले' विचलित भी हो जायेगें और- भिक्खू य, राओ वा वियालेवा, णिक्खमाणे, पविसमाणे वा' भिक्षुक जैन साधु रातमें या विकाल समय में उस उपाश्रय से निकलते समय या उपाश्रय में प्रवेश करते समय 'पयलिज वा पवडेज्जवा' प्रक्खलित होगा या गिर जायेगा 'से तत्थ पयलमाणे बा' वह साधु उस उपाश्रय में प्रस्खलित होता हुआ या 'पवडेमाणे वा हत्थं वा पायंवा लूसिवा' गिरता हुआ हाथ को या पाद को तोड डालेगा अथवा 'पाणाणि वा भूयाणि वा' बहुत से प्राणों अर्थात् प्राणियों का तथा भूतों का एवं 'जीवाणिवा सत्ताणिवा जाव' जीवों को और सत्वों को यावत् 'वयरोविजवा' विनाश कर भृगयर्भ होय अथवा डाय अथवा 'चिलिमिली वा' प होय अथवा 'चम्मए वा' 'चम्मकोस वा' अर्भ मेश होय अथवा 'चम्मछेयण वा' थर्म छेदन होय से मवा गोटले } छत्र विगेरे उपर उस मधा 'दुबद्धे' सारी रीते से उपाश्रयमां जान हाय तथा 'दुष्णक्खित्ते' सारी रीते महोणस्तथी राजेस न होय तथा 'अणिकंपे' निष्ठय पशु न होय अर्थात् हासत असता होय तेथी 'चलाचले' राजेस स्थणेथी यक्षित पशु य 'भिक्खू राओ वा वियाले वा' छैन साधु शतभा के समय में समये विद्वाणमां ये उपाश्रयमांथी 'णिक्खममाणे वा पविसमाणे वा' नीज्जती वषते उपाश्रयमां प्रवेश र 'पयलिज्ज वा पवडेज्ज वा' जसी लय अथवा पडि नय 'से तत्थ पयलमाणे वा पमाणे वा' मने ते साधु से उपाश्रयमां सपतां पति 'हृत्थं वा पावा' हाथ गने 'लूसिज्ज वा' लांगी नामशे अथवा 'पाणाणि वा भूयाणि वा ' धा आशियाने अथवा लुतोने अथवा 'जीवाणि वा सत्ताणि वा' भवन सत्वाने 'जाव वरोविज्ज वा' यावत् विराधित हरी नामशे भने भारी नामशे. 'अह भिक्खूणं पुग्यो શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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