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________________ ४२८ आचारांगसूत्रे हस्तेन वा उपाश्रयस्थान संस्पृश्य 'पच्छा पाएण वा' पश्चात् पादेन वा गमनागमनं कुर्वन् 'तो संजयामेव निक्खमिज वा पविसिज्ज वा' ततः संयत एव यतनापूर्वकमेव निष्का. मेद् वा प्रविशेद् वा, अन्यथा एतादृशे उपाश्रये यतनापूर्वकनिष्क्रमणामावे प्रवेशाभावे वा 'केवलीबूया' केवली केवलज्ञानी भगवान् ब्रूयात्-ब्रवीति उपदिशति किमित्याह 'आयाणमेयं' आदानं कर्मबन्धनकारणम् एतत् भवति तथाहि 'जे तत्थ समणाण वा माहणाण वा' यत् तत्र तथाविधे उपाश्रये श्रमणानां वा शाक्यचरकप्रभृतिसाधूनाम् ब्राह्मणानां वा 'छत्तए वा छत्रकं वा 'मत्तए वा' अमत्रकं वा भाजनविशेषः 'दंडए वा' दण्डको वा 'लट्ठिया वा' यष्टि वा 'भिसिया वा' योगासनविशेषः 'नालिया वा' नलिका वा बृहद् यष्टिः, 'चेलं वा' वस्त्रं वा 'चिलिमिली वा' चिलिमिली वा यवनिका 'चम्मए वा' चर्मकं वा मृगचर्म विशेषः 'चम्मकोसए वा' चर्मकोशका वा मृग चर्मपुटकम् 'चम्मच्छेपणए वा' चर्मच्छेदनं हुए या अन्दर में प्रवेश करते समये पहले हाथ से उस उपाश्रय स्थान को स्पर्श के द्वारा टटोल कर बाद में पाद से यातायात करके तब संयम पूर्वकही बाहर निकले या अन्दर जाय, अन्यथा इस प्रकार के उपाश्रय में यतना पूर्वक नहीं निकलने या नहीं प्रवेश करने से केवली बूया आयाण मेयं केवली-केवल ज्ञानी वीतराग भगवान महावीर स्वामी कहते हैं कि यह आदान है अर्थात् कर्मबन्ध का कारण है एतावता इसप्रकार के छोटे द्वार वाले अत्यंत नीचे और अत्यंत छोटे तथा शाक्य चरकादि श्रमणों से भरे हुए उपाश्रय में रहना कर्मागमन का हेतु माना जाता है क्योंकि 'जे तत्थ समणाण वा माहणाण वा' उस उपाश्रय में चरकशाक्य वगैरह श्रमणों का और ब्राह्मणो का 'छत्तएबा' छत्र-छाता तथा 'मत्तएया' अमत्र भाजन पात्र विशेष होगा या-'दंड एवा' दण्ड-यष्टि छडी होगी या 'लटिया पा' या लाठी होगी या 'भिसिया वा' योगासन होगा या 'नालिया वा' नालिका बडी यष्टि होगी या 'चेलं वा वस्त्र होगा तथा 'चिलिमिलि २५श ४शन १५. म 'पच्छा पाएण वा' ते ५छी ५थी गमनागमन शन 'तओ संजयामेव' ते ५७ सयम पूर्व २४ 'निक्खमिज्ज वा परिसिज्ज वा' ५२ નીકળવું અથવા અંદર પ્રવેશ કરે આવા પ્રકારના ઉપાશ્રયમાં યતના પૂર્વક ન નીકળવા न प्रवेश ४२वाथी 'केवलोबूया आयाणमेय' विज्ञानी भगवान महावीर प्रभु ४३ छ કે એ આદાન અર્થાત્ કર્મબંધનું કારણ કહેવાય છે. એટલે કે આવા પ્રકારના નાના બારણાવાળા અને અત્યંત નીચા તથા ઘણા નાના તથા ચરકશાકય વિગેરે શ્રમણોથી ભરેલા ઉપાશ્રયમાં રહેવું એ કર્માગમનનું કારણ માનવામાં આવેલ છે, કેમ કે એ ઉપાश्रयमा 'जे तत्थ समणाण वा माहणाण वा' ५२४ ४य विगेरे श्रमना मने प्राझीना 'छत्तए वा' छत्रिय अथवा 'मत्तए वा' अमत्र अर्थात् पास पात्र विशेष हाय मथ4'दंडए वा' ४ सारी खाय मा 'लट्टिया वा' ॥31 424। 'भिसिया वा' मासन विषय अथवा 'नालिया वो' मोटी डी डाय अथवा 'चेलं वा' पर श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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