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________________ થર ___ आचारांगसूत्रे संरंभेण' महता संरम्भेण षट्कायसंरम्भेणेत्यर्थः 'महया आरंभेणं' महता आरम्भेणषटकायारम्भेण इत्यर्थः एवं 'महया विरूवरूवे हिं' महद्भिः विरूपरूपैः नानाप्रकारकैः ‘पावकम्मकिच्चेहि पापकर्मकृत्यैः पापकर्मानुष्ठानः तान्याह-'तं जहा-छायणओ लेवणओ' तद्यथा-छादनतः छादनकर्मतः, लेपनतः लेपनकमतः तथा 'संथारदुवारपिहणओ' संस्ता. रकद्वारपिधानतः संस्तारकार्थ स्थलभूमि समीकरणम् द्वारपिघानार्थश्च लेपनादिक्रियातः इत्यादि प्रयोजनान्युद्दिश्य 'सी भोदए वा परद्ववियपुव्वे भवइ' शीतोदकं परिष्ठापितपूर्व भवति सेचनद्वारा उष्णतापनिवारणार्य शीतोदकं पूर्व व्यवस्थापितं भवति शीततौं च 'अग णिकाये उज्जालियपुव्ये भवइ' अग्निकायः शैत्यापनोदार्थ उज्ज्यालिनपूर्वो भवति, अग्निः पूर्वम् उष्णतार्थ प्रज्वालितो भवतीत्यर्थः-इत्येवं षट्काय संरम्भारम्भसमारम्भैः संयम'महया संरंभेणं' अत्यंत बडे अप्काय जीवों के आरंभ से एवं 'महयाभारम्भेणं' बडे ही षट्काय जीवों के आरंभसे एवं-'महया विरूवरूवेहि' बडे ही विरूप-रूप नानाप्रकार के 'पावकम्मेहि'-पापकर्मों के अनुष्ठान आवरण से 'तं जहा' जैसे कि 'छायणओ-छादनकर्म से एवं-'लेवणओ-लेपनकर्म से तथा-'संथारद्वार गहाणाओ' संस्तारकद्वार पिधान के द्वारा अर्थात् संस्तारक संघराशय्यापाथरने के लिये स्थल-भूमिको समतल करना और द्वार दरवाजाको पिधान बन्द करने के लिये लेपन करना इत्यादि अने को प्रयोजनों को लक्ष्यकर 'शीओदए वा परिठवियपुव्ये भवई' शीतोदक को पहले से ही रखना पडा है अर्थात् सेचन द्वारा उष्णताप निवारण के लिये पहले से ही ठण्डा पानी को व्यवस्थापित करना पडता है। और ठण्डी ऋतु सियाला में 'अगणिकाए वा उज्जालियपुग्वे भयइ' अग्निकाय को पहले से ही शैत्य को दूर करने के लिये प्रज्वालित करना पडता है अर्थात् उष्णता के लिये अग्नि को प्रज्वालित कियाजाताहै इस तरह षट्काय जीवों के समारंभे ' मोटर २०५४ाय, ते४२४॥य, पायुय, पनपतिय, मने सय थाना सभा लथी 'महया संरंभे गं' ! मोटा ५४ाय याना समयी तथा 'महया आरंभे ' मोटापट्४ाय वाना मार मथी तथा 'महया विरूवरूवेहि पावकम्मेहि मोटा भने ४२ना पा५ र्भाना मायथा 'तं जहा' । -'छायणओ लेवणओ' छाहन भथी तथा बेपन ४थी तथा 'संथार दुवारपिहाणाओ' सस्ता२४ द्वार पियाना અર્થાત્ સંથારો પાથરવા માટે ભૂમિને સરખી કરવી અને દ્વાર દરવાજાને પિધાન એટલે ५५ ३२१॥ दी ५ विगैरे अने प्रयासनाने उद्देशाने 'सीओदएण वा परवियपुब्बे મા’ શીતાદક પહેલેથી જ રાખવું પડે છે. અર્થાત્ છાંટવા માટે ગરમીના નિવારણ भाट पसेथी । ४ पाए भी भू४वामां आवेस डाय छे. तथा 'अगणिकाए वो उज्जालियपुब्वे भवई' यानी 32 *तुमा पोथी शीत निवारण माट मशिકાય પ્રજવલિત કરવામાં આવે છે અર્થાત ઉષ્ણતા માટે અગ્નિ પટાવીને તૈયાર કરવામાં श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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