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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू० १६ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् ३६५ 3 तदुपपादयन्नाह - भिक्खुस्स गाहावइर्हि साद संवसमाणस्स' भिक्षुकस्य साधोः गृहपतिभिः सार्द्धम् संवसतः उपाश्रये निवासं कुर्वतः तथाहि 'इह खलु गाहावइणीओ वा' इह खलु गृहपति सहिते उपाश्रये गृहपत्न्यो वा गृहपति भार्याः, 'गाडावर घ्याओ वा' गृहपतिदुहितरो वा गृहपति कन्यकाः 'गाहावसुहाओ वा' गृहपतिस्नुपाः वा--गृहपति पुत्रवध्वः, ' Treasurईओ वा' गृहपतिधात्र्यो वा 'गाहावइदासीओ वा' गृहपतिदास्यो वा 'गाहावड़ कम्मकरीओ ar' गृहपतिकर्मकर्षो वा गृहपतिपरिचारिकाः स्युः, 'तासि च णं एवं वृत्तपुष्वं भवई' तासां च खलु गृहपत्नी प्रभृतीनाम् एवम् वक्ष्यमाणरीत्या उकपूर्वम् - पूर्व कथितं भवति, किमित्याह - 'जे इमे भवति समणा भगवंतो' ये तावद् इमे भवन्ति भगवन्तः श्रमणः 'जाव उवारया मेहुणाओ धम्माओ' यावत् - शीलवन्तः व्रतवन्तः गुणवन्तः संयताः संवृताः ब्रह्मचारिणः उपरताः सर्वथैव निवृत्ताः मैथुनाद् धर्मात् विषयभोगवर्जिताः भवन्ति, तस्मात् 'णो खलु एतेसिं कप्पइ' नो खलु एतेषां - साधूनां कल्पते युज्यते 'मेहुणधम्मपरियारणाए आउट्टित्तए' मैथुनधर्मपरिचारणाय - विषयभोग सेवनाय आकूटयितुम् - अर्थात् कर्मबन्ध का कारण होता है क्योंकि गृहपति- सपरिवार गृहस्थ श्रावक के साथ उपाश्रय में निवास करने वाले साधु के लिये कर्मबन्ध इसलिये होता है कि 'इह खलुगाहावइणीओ बा गाहावइधूयाओ वा' इस सपरिवार गृहपति-गृहस्थ सहित के निवासरणान में कदाचित् गृहपति की भार्या स्त्री या गृहपति की कन्या या 'गाहावई सुन्हाओ वा' गृहपति की पुत्रवधू या 'गाहावई धाइयो वा' गृहपति की धाई ( धात्री) या ' गाहावइदासीओ वा' गृहपति की दासी या ' गाहा वइकम्मकरीओ वा' गृहपति की कर्मकरी 'तासि च णं एवं घुत्त पुत्र्यं भवई नौकरानी को ऐसा पहले से पता हो की 'जे इमे भवति समणा भगवंतो जाव उवरया मेहुणधम्माओ' जो ये साधु महात्मा शील वाले व्रतवाले गुणवाले संयत संवृत ब्रह्मचारी होते हैं वे सभी मैथुनधर्म विषयभोग से थाय छे है- 'इह खलु गाहावइणीओ वा' परिवारवाणा गृहस्थना निवासवाणा स्थानभां रहेवाथी हाथ गृहयतिनी खी 'गाहावइ धूयाओ वा' गृहपतिनी उन्या अथवा 'गाहावई सुहाओ वा' शृडपतिनी पुत्रवधू अथवा 'गाहावइ धाईओ वा' गाथापतिनी घाई घाईपाखी) अथवा 'गोहावइ दासीओ वा' गृहस्थनी हासी अथवा ' गाहाas कम्मकरीओ वा' गृहस्थनी उभरी अर्थात् नाम्राशीने 'तानि च णं एवं वुत्तपुव्वं भवइ' पोथी जेवी भाष होय ! जे इमे भवंति समणा भगवंतो' ने भी साधु महात्मा शोसवाणा, व्रतवाणा, गुयुवाणा संयंत संवृत ब्रह्मयारी होय छे, 'जाव उवरथा मेहुणधम्माओ' तेथे। मैथुनधर्म इपीलोगथी अर्थात् सांसारिक स्त्री सेवन ३५ विषय लोगोथी त होय तेथी 'णो खलु कपई एतेसिं मेहुणधम्मपरियारणाए आउ ट्टित्तर' या साधु महात्माने विषय लोग सेवन करवा भाटे तैयार ४२वा योग्य नथी. 'जा च खलु एएहिं सद्धि' परंतु ने श्री मा શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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