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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू. ४ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् ३२३ 'पाणाई भूयाई' प्राणान्-प्राणिनः, भूतानि 'जीवाई सत्ताई' जीवान् सत्त्वान् ‘समारब्भ' समारभ्य-हिंसनरूपसमारम्भ कृत्वा उपाश्रयार्थमुपमर्थ 'समुदिस्स' समुद्दिश्य-लक्ष्यीकृत्य उपाश्रयं कुर्यात् ‘कीय' कोतम्-द्रव्यविनिमयेन सम्पादितम् 'पामिच्चं' प्रामित्यम्-द्रव्यपर्युदश्चनेन (पैसा उधार इति भाषा) निर्मितम् 'अच्छिज्ज' आच्छेद्यम् हठात् स्वायत्तीकृतम् 'अणिसटुं' अनिसृष्टम्-सर्वस्वाम्यननुमतम् 'अभिहडं' अभिहृतम्-निष्पन्नमेवान्यतः समानीतम् एवंभूतमुपाश्रयम् 'आहटु चेएति' आहत्य-उपेत्य चेतयति यदि गृहस्थः साधव ददाति तर्हि 'तहप्पगारे तथाप्रकारे तथाविधे प्राणिप्रभृतीन् समारभ्य क्रीयणादिना सम्पादिते 'उवस्सए' उपाश्रये-प्रतिश्रयरूपे 'पुरिसंतरगडे वा' पुरुषान्तरकृते वा दातृ अपेक्षया पुरुषान्तरनिर्मिते मन में विचार कर एतावता एक साधु के निमित्त 'पाणाइं भूयाई प्राणियों को और भूतों को एवं 'जीवाई सत्ताई' जीवों की तथा सत्वों की हिंसा के लिये 'समारब्भ' समारम्भ करके अर्थात् उपाश्रय के लिये प्राणी वगैरह का उपमर्दन करके उस एक साधु को लक्ष्यकर श्रावक उपाश्रय को बनावे 'कीयं पामिचं' द्रव्य का विनिमय करके रुपया पैसा देकर उपाश्रय को तैयार करे अथवा रुपया पैसा उधार लेकर उपाश्रय निर्माण करे या 'अच्छिज्जं अणिसट्टे' हठात जबरदस्ती किसी दूसरे के अधिकार होने पर भी 'अभिहडं आहटु चेति' उस से छीन कर अपना अधिकार में करले अथया सभी मालिक की अनुमति के बिना ही लेले या बने बनाये हुए उपाश्रय को कहीं से ले आवे इस प्रकार के उपाश्रय को यदि कोई गृहस्थ श्रावक साधु को देखें 'तहप्पगारे उवस्सए' इस प्रकार के प्राणी जीव जन्तु का उपमर्दन करके खरीद विक्री वगैरह के द्वारा सम्पादिक उपाश्रय में चाहे वह उपाश्रय 'पुरिसंतरकडे वा' पुरुषान्तर कृत-दाता સાધમિક સાધુના નિમિત્તે અર્થાત મનમાં વિચાર કરીને એટલે કે એક સાધુના નિમિત્તે 'पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई' प्राणियोन तथा भूताने मन वान तथा सत्वाने 'समारम्भ' હિંસા માટે સમારંભ કરીને અર્થાત ઉપાશ્રય માટે પ્રાણિ વિગેરેનું ઉપમર્દન કરીને से 23 साधुने 'समुद्दिस्स' देशाने श्राप गृहस्थ उपाश्रय मानावे अथवा 'कीय' पैसाना विनिमय-मस-rai ४शन उपाश्रय तैयार ४२ २२२१॥ 'पामिच्चं' पैसा धार छीना सन. 3॥ मना अथवा 'अच्छिज' १४२४२ती साथी 5 m अधिार डापा छतां तेनी पांसथी दुटपान उपाश्रय अनारे २५०। 'अणिसटुं' या मालिनी समती १२ / स मा 'अभिहडं' तैयार नावे पाश्रयने भी पांथी મેળવી લીધેલ આવા પ્રકારને ઉપાશ્રય કે ગૃહસ્થ શ્રાવક સાધુને આપે તે “તeg. गारे उबस्सए' मा ४२ना प्राणी ७५०तुनु भईन श परी ४२० पिर ७५२ argue प्रारथी भेगमा पाश्रयमा याडे तो त पाश्रय 'पुरिसंतरकडे' हाती श्रीमाया सूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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