SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंघ २ उ. ९ सू. ९७ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् २५१ स्वादिमं या आदेशाय उपसंस्कुयमाणं प्रेक्ष्य नो शीघ्रं शीघ्रम् उपसंक्रम्य अवभाषेत, नान्यपालान निश्चयात् ॥ सू० ९७ ॥ टीका-पिण्डैषणा विषयमधिकृत्याह-'से भिक्ख वा भिक्खुणी वा स पूर्वोक्तो भावभिक्षुको वा भावभिक्षुकी वा 'गाहावइकुलं' गृहपतिकुलं 'जाव पविढे समाणे' यावत्-पिण्डपातप्रतिज्ञया भिक्षालाभार्थम् प्रविष्टः सन् ‘से जं पुण एवं जाणिज्जा' स पूर्वोक्तो भावभिक्षु यदि पुनरेवं वक्ष्यमाणरीत्या जानीयात् 'मंसं वा मच्छं वा भन्जिजमाणं पेहाए तिल्लपूयं वा' मांसं वा-मांसफलमध्यवर्तिसाररूपं शिलीन्ध्ररूपं वर्षाकालिक छत्राक नामक वनस्पतिविशेष, मत्स्यम्-मत्स्यसदृशबहुकण्टकतुल्य बहुशिरायुक्तं वनस्पतिविशेषरूपं भयमानं पच्यमानं प्रेक्ष्य–दृष्ट्वा तैलापूपं तैलप्रधानपूपश्च पच्यमानं 'दृष्ट्वेत्यर्थः 'असणं या पाणं वा खाइमं या साइमं वा' अशनं वा पानं खादिम वा स्वादिमं वा चतुर्विधमाहारजातम् 'आएसाए' आदेशाय ___टीकार्थ-अब पिण्डैषणा विषय को लक्ष्य कर के कहते हैं 'से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, गाहावाकुलं जाव पबिहे समाणे' यह पूर्वोक्र भिक्षुक संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी गृहपति गृहस्थ श्रावक के घर में यावतू पिण्डपात की प्रतिज्ञा से अर्थात् भिक्षालाभ की आशा से अनुपविष्ट होकर 'से जं पुण एवं जाणिज्जा' यह साधु और साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से जान ले कि 'मंसं वा' मास अर्थात् फल के अंदर का गर के समान स्वाद वाले वनस्पति विशेष शिलीन्ध्र छत्राक-गोबर छत्ता जो कि वर्षा समय में जमीन से उत्पन्न होता है उस को और मत्स्य-अर्थात् मछली के समान बहुत से कण्टक-कौटे चाले बहुत शिर से युक्त वनस्पति विशेष को 'भजिजमाणं पेहाए' भुङ्गे जाते हुए अर्थातू पकाये जाते हुए देखकर और 'तिल्लपूयं वा तैलपू-अधिक तेल प्रधान मालपूडे को भी पकाये जाते हुए देख कर एवं 'असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा' अशनादि चतुर्विध आहार जात को भी 'आएसाए उवक्खडिज्जमाण पेहाए' अतिथि पाधूर्णिकों के लिये पकाये जाते हुए देखकर 'णो खद्धं હવે પિષણાને ઉદેશીને કથન કરવામાં આવે છે.टी -से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' त पूर्वात साधु 3 सायी 'गाहावइकुलं जाव' स्य श्रीपना घरमा लक्षI सनी २७थी यावत् 'पयिढे समाणे' प्रवेश ४१२ से जं पुण एवं जाणिज्जा' ने मेवु तमना मां आवे 'मंसं वा मच्छं वा' मांस अर्थात ફળની અંદર ગર ભાગ રૂપ વનસ્પતિ વિશેષ જેમ કે-શિલિંધ, છત્રાક છાણ છત્તા કે જે ચોમાસામાં થાય છે તથા તેને માછલીની જેમ ઘણું કાંટાવાળા ઘણી શિરાવાળા વનસ્પતિને 'भज्जिजमाण पेहाए' २ याताधन तमा 'तिल्ल पूयं वा' तेसवाणा भासपूषाने २ पाता निधन तभर 'असणं वा पाणं वा खाइम वा साइम वा' अशा यतुविध २२ 'आएसाए' भातथिया भाटे 'उबक्खडिजमाणं पेहाए' धातो अन 'णो खद्धं खर्चा उपसंकमित्ता' अत्यंत श्रीमाया सूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy