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________________ मर्मपकाशिका टीका श्रुतकंस्घ २ उ. ९ सू. ९६ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् २४९ दोषयुक्तो भवेत् तस्मात् ‘णो एवं करिजा' नो एवं कुर्यात्-आधार्मिकाशनादिपचने साधुः तूष्णीभावं समाश्रित्य न उपेक्षेत अपि तु प्रत्याख्यानं कुर्यात् तदाह-'से पुवामेव आलोइज्जा' स-साधुः पूर्वमेव भिक्षाग्रहणात्प्रागेव आलोचयेत-पर्यालोचनं विदध्यात, आलोचनप्रकारमाह-'आउसोत्ति वा, भगिणित्ति वा' आयुष्मन् ! इति वा पुरुषं सम्बोध्य, भगिनि ! इति वा स्त्रियं सम्बोध्य कथयेत्, किं तदित्याह-'णो खल्लु मे कप्पड आहाकम्प्रियं' नो खलु मेमह्यम्, कल्पते आधाकर्मिकम्-आधार्मिकदोषयुक्तम् 'असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइम चा' अशनं वा पानं वा खादिमं वा स्वादिमं वा चतुर्विधमाहारजातं 'भुत्तए वा पायए वा' स्थान एवं आधाकर्मादि दोष लगेगा इसलिये 'णो एवं करिजा' ऐसा नहीं करे अर्थातू आधार्मिक अशनादि चतुर्विध आहार को पकाने में साधु मौन होकर उसकी उपेक्षा ही केवल नहीं करे अपितु उसका प्रत्याख्यान करे, ___ अब उसी प्रत्याख्यान के प्रकार को बतलाते हैं-'से पुन्यामेव आलोइज्जा'आउसोत्ति वा, भगिणि त्ति वा' वह संयमवान् पूर्वोक्त साधु और साध्वी भिक्षा लेने से पहले ही विचार कर कहे कि-हे आयुष्मन् ! श्रावक ! हे भगिनि श्राविक मुझे आधार्मिक-आधाकर्मादि दोषों से युक्त अशनादि चतुर्विध आहार जात 'भुत्तए चा पायए वा' खाने और पीने में नहीं खपेगा, इसलिये 'मा उवक्करेहि' अशनादि आहार जात को पकाने के लिये पात्रादि उपकरण मत लाओ तथा 'मा उवक्खडेहि' अशनादि चतुर्विध आहार जात को मत पकाओ, अर्थात् हमारे लिये पाक मत करो, 'से सेवं वयंतस्स परो आहाकम्मियं असणं चा, पाणं चा, खाइम चा, साइमं वा' इस तरह मना करने पर भी पर-गृहस्थ भने सापामा साये छ. तथा 'णो एवं करेज्जा' यु४२ नहीं, अर्थात् साधा. મિક અશનાદિ ચતુવિધ આહારને રાંધવામાં સાધુએ મૌન રાખીને કેવળ તેની ઉપેક્ષા જ ન કરવી પરંતુ તેનું પ્રત્યાખ્યાન કરવું. હવે તે પ્રત્યાખ્યાનના પ્રકારને બતાવે છે.– 'से पुवामेव आलोइज्जा' साधु, साथी लिक्ष देता परसir वियार शन 3 3-'आउतोत्ति वा, भगिणित्ति वा मायुमन् श्री अथवा मन श्री4ि318, 'आहाकम्मियं' भाषाभांति होषापाणु 'असणं वा पाणं वा खाइम वा साइम वा' ना यतुविध माहा२ द्रव्य अय41 पान द्रव्य , माहिम, स्थाहिम पहा 'भुत्तए वा पायए या' माया पापामा ‘णो खलु मे कप्पई' भन पाने ४८५तु नथी तेथी AAll माहार मनायानी 'मा उवकरेहि' सामश्री ना. तथा अशा आहार 'मा उवक्खडेहि' मनाया नही अर्थात् भारे भाट न पा तैयार न ४३१. से सेवं वयंतस्स परो' मा शत निषेध ४२१। छतi ५२- ७५ श्रा५: 'आहाकम्मिय' आधाभ पाणी 'असणं या पाणं या खाइमचा साइम वा' अशन पान, माहिम सने स्वामि यतविध माहार आ०३२ श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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