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________________ - - - २४२ आचारांगसूत्रे या 'खेते या क्षेत्रे वा 'मडंबे वा' मडम्बे वा 'दोणमुहे वा' द्रोणमुखे वा 'जाव' यावत्आकरे वा 'रायहाणिसिवा' राजधान्यां वा 'संतेगइयस्स भिक्खुस्स' सन्ति-विद्यन्ते एककस्य एकस्य कस्यचिद् भिक्षुकस्य 'पुरे संथुया वा' पुरा संस्तुताः वा पूर्वपरिचिताः सम्ब. न्धिनः मातापित्रादयः 'पच्छा संथुया वा' पश्चात् संस्तुता वा-पश्चात् परिचिता वा श्वशुरश्वश्रादयः 'परिवसंति' परिवसन्ति-निवसन्ति 'तं जहा-गाहावह वा' तद्यथा-गृहपतिर्या 'गाहावइभारिया वा' गृहपतिभार्या वा 'गाहावइ भगिणि वा' गृहपतिभगिनी वा 'गाहावरपुत्ते पा' गृहपतिपुत्रो वा 'गाहावइधए वा' गृहपति दुहिता वा 'सुण्हा' स्नुषा-गृहपतिपुत्रवधर्वा 'जाव कम्मकरी वा' यावत्-दासो वा दासी वा कर्मकरो वा 'कम्मकरी वा' कर्मकरी वा स्यात् तर्हि 'तहप्पगाराई कुलाई' तथाप्रकाराणि-पूर्वोक्तरूपाणि पूर्वपरिचितानि पश्चात्परिचितानि खान में या राजधानी में 'संतेगइयस्स भिक्खुस्स, पुरे संथुया वा, पच्छा संथुया चा, परिवसंति' इस पूर्वोत ग्राम नगरखेड वगैरह में किसी एक साधु के पूर्व संस्तुत-पहले के परिचित माता पिता भाइ बन्धु वगैरह रहते हैं अथवा पश्चात्पीछे के परिचित श्वशुर सास श्याला वगैरह रहते हैं 'तं जहा-गाहावइ वा, गाहायइभारिया वा, गाहावइ भगिणि वा' जैसे कि-उन संबन्धियो में कोइ परिचित गृहपति-गृहस्थ श्रावक हो सकता है, या गृहपति की भार्या-धर्मपत्नी हो सकती है या गृहपति की भागनी-बहन हो सकती है या 'गाहायइ पुत्ते वा' गृहपति का पुत्र ही पूर्व परिचित हो सकता है या 'गाहावइ धूए वा' गृहपति की दुहिता लडकी ही पूर्व परिचित हो सकती है 'लुपहोवा' स्नुषा-गृहपति की पुत्रवधू ही पूर्वपरिचित हो सकती है या 'जाव' यावत्-दास या दासी, कर्मकर-नोकर या 'कम्मकरी वा' कर्मकरी-नोकरानी ही पूर्व या पश्चात् की परिचित हो सकती है इसलिये 'तहप्पगाराई कुलाई' इस प्रकार के पूर्व परिचित पित्रादि के घर में 'कब्बडे वा' नाना नसभा 'खेत्ते वा' क्षेत्रमा अथवा 'मडंबे वा' माना भाममा मया दोणमुहे वा' द्रो भु५ नानी जुपडीमा 'जाव आगरे वा' मगर यावत् पत्तन-ननी पस्तीमा अथवा मा४।२-माझा अथवा 'रायहाणिसि वा' २wधानीमा 'संतेगइयस्स भिक्खुस्स' अथवा मा पूर्वरित आम ना विभा मे साधुन 'पुरे. संथुया' पडेदानी ५२थित माता पिता मा अधु विगैरे अथवा 'पच्छासंथुया वा' पछीथी ५२यित थयेर सासु, ससरा, साय विगेरे परिवसति' २ छे 'तं जहा भ3 'गाहा. वइ वा' ते समापियामा ४ पश्ििथत श्रा५४ १७२थ डाय 424। 'गाहावइ भारिया वा' गृहपतिना पत्नी डाय 'गाहावइ भगिणि वा' २५ श्रावनी पन डाय २५२१॥ 'गाहावइ पुत्ते वा गृहस्थन। पुत्र डाय अथवा 'गाहावइ धूए वा' स्थनी पुषी पूर्व पश्ििथत डाय मा 'सुण्हा वा' शृस्थनी पुत्र१५ पूर्व पश्ििथत डाय अथवा 'जाब' यावत् हास, हासी, २२ २।४२]ी पूर्व या पश्चात् पश्ििथत ३४ छ. 'तहप्पगाराई कुलाह' श्री. आयासूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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