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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. ७ सू० ९५ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् २४१ पविढे समाणे' यावत्-प्रविष्टः सन् 'वसमाणे या' वसन् वा-जानुजङ्घादीनां परिक्षीणतया अन्यत्र गमनासामथ्र्येण एकस्मिन्नेव क्षेत्र स्थिति कुर्वन् मासकल्पविहारी वा भूत्वा 'गामाणु, गाम वा दूइज्जमाणे' ग्रामानुग्राम वा गच्छन्-विहरन् ‘से जं पुण एवं जाणिज्जा' स-संयमवान् भिक्षुः यदि पुनरेवं वक्ष्यमाणरीत्या जानीयान् 'तं जहा-गाम वा तद्यथा ग्रामम् वा 'णयरं वा' नगरं वा 'कबडं वा' कर्बर्ट वा 'खेडं वा' क्षेत्रम्, 'मडंब वा' मडम्बं वा 'दोणमुहं वा' द्रोणमुखं वा 'जाव' यावत्-आकरं वा 'रायहाणि वा' राजधानी वा जानीयादिति पूर्वेणान्वयः 'इमं सि खलु गामंसि या' अस्मिन् खलु ग्रामे वा 'णयरे वा' नगरे वा 'कबडे वा' कवटे टीकार्थ-अब पिण्डैषणा का अधिकार होने से पिण्डपात-भिक्षा विशेष को लक्ष्य कर उसका निषेध करते हैं-'से भिक्खू वा, भिक्षुणी या, गाहावइकुलं जाय पविढे समाणे' वह पूर्वोक्त भिक्षुक-संयमवान साधु और भिक्षुकी-साध्वी गृहपति-गृहस्थ श्रावक के घर में यावत्-पिण्डपात की प्रतिज्ञा से-अर्थात् भिक्षा लेने की इच्छा से अनुप्रविष्ट होता हुआ, या 'वसमाणे वसता हुआ अथवा 'गामाणुगामं दुइजमाणे वा' एक ग्राम से दूसरा ग्राम जाता हुआ ‘से जं पुणएवं जाणिज्जा' वह साधु और साध्वी यदि ऐसा-वक्ष्यमाण रूप से जानले कि 'गामं वा, णगरं वा, खेडं वा, कब्बडं वा, मडंबं बा, पट्टणं घा, आकरं वा, दोणमु. हंवर, जाव रायहाणिं वा,' यह ग्राम है, या नगर है या खेट-छोटा नगर है, या कर्बट छोटा ग्राम है, या मडम्ब-छोटो झोपडी है, या क्षेत्र है, या द्रोणमुख है या यावत् पत्तन है अर्थात् छोटी वसती है, यो आकर-खान है या राजधानी है ऐमा समझले कि 'इमंसि खल, गामंसि चा, जयरे वा, कब्बडे वा, खेत्ते वा, मडंबे चा, दोणमुहे वा, जाव-आगरे वा, रायहाणिसि वा,' इस पूर्वोक्त ग्राम में या नगर में या कर्बट में अर्थात् छोटा नगर में या क्षेत्र में या मडम्व-छोटा ग्राम में या द्रोणसुख-छोटी झोपडी में, या यायत-पत्तन-छोटी वसती में या आकर હવે પિષણને અધિકાર હોવાથી ભિક્ષા વિશેષને ઉદેશીને તેને નિષેધ બતાવે છે - ___-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूति साधु मा२ सायी 'गाहावइकुलं जाव' ७२० श्रावन! घ२भा यावत् HिAL सेपानी ४२७।थी 'पविढे समाणे' प्रवेश रीन भा२ 'वसमाणे' पास ३२ता ५४ मा 'गामाणुगाम दूइज्जमाणे वा' २४ मथी भीत आमे ता से जं पुण एवं जाणिज्जा' ते साधु साथीननीये यामां माव्या प्रमाणे त म है 'गाम वा' मा गमछ. 'रं वा' अथवा नगरछ. गथवा 'खेड वा' नान नगर छे. अथवा 'कब्बडं वा' नानु म छे. अथवा 'मडंब वा' 424 नानी ५४ी छे, 24240 ‘पट्टणं वा' नानु म. 1241 'आगरं वा' मा छ, अथवा 'दोणमुहं वा' द्रोणुभुप छ. 'जाव रायहाणिं वा' अथवा पानी छ. मे सभाभा यावे 3 'इम सि खलु गामंसि' An yalरत आभामा ‘णयरे या' नसभा 24241 आ०३१ श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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