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________________ २२२ आचारांगसूत्रे पविढे समाणे' यावत्-पिण्डपातप्रतिज्ञया-भिक्षाग्रहणार्थम् प्रविष्टः सन् ‘से जं पुण एवं जाणिज्जा' स-भावभिक्षुः यदि पुनरेवं वक्ष्यमाणरीत्या जानीयात् 'इवखुमेरगं वा' इक्षुमेरकं वा-इक्षुखण्डम् त्वगरहितेक्षुखण्डिकेत्यर्थः 'अंककरेलुयं वा' अङ्ककरेलुकम् अङ्ककरेलुनामकं वनस्पतिविशेषं 'कसेरुगं वा' कशेरुकं वा-कन्दविशेषरूपम् "सिंग्घाडगं वा' शृङ्गाटकं वा जल जम् (सिंहार इनि भाषा) 'पूति आलगं वा' पूति-आलुकं वा वनस्पतिविशेषरूपम् 'अण्णयरं वा तहप्पगारं' अन्यतरद् वा अन्यद् वा तथाप्रकारम् पूर्वोक्तसदृशं जलजातं कन्दविशेष वनस्पतिविशेषरूपं वा 'आमगं' आमकम्-अपरिपक्वम् 'असत्थपरिणयं' अशस्त्रपरिणतम् अशस्त्रोपहतम् 'अप्फासुयं' अप्रासुकम् सचित्तम् 'जाव नो पडिगाहिज्जा' यावत्-अनेषणीयम टीकार्थ-अब आम-कच्चा इक्षु-गन्ना-शेरडी का चगैरह को लक्ष्यकर निषेध करते हैं-'से भिक्खू वा मिक्खुणी वा गाहायइकुलं जाव पविढे समाणे' वह पूर्वोक्त भिक्षुक-भाव साधु और भिक्षुकी-भाव साध्वी, गृहपति-गृहस्थ श्रावक के घर में यावत्-पिण्डपात की प्रतिज्ञा से अर्थात् भिक्षा लेने की इच्छा से अनु. प्रविष्ट होकर 'से जं पुण एवं जाणिज्जा' वह साधु और साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से जान ले कि 'इच्छुमेरगं चा' इक्षुमेरक-छिलका रहित गन्ने का टुकडा है अथग 'अंककरेलुयं वा' अक्ककरेलु नाम का वनस्पति विशेष है या 'कसेरूगं वा' कशेरूक-कशोर नाम का कन्द विशेष है या 'सिंघाडगं वा' शृंगाटक जल में उत्पन्न होनेवाला सिंहार है या 'पूतिआलुगं वा' पूति-आलुक नामका वनस्पति विशेष है ऐसा जानकर 'अण्णयरं वा तहप्पगारं आमर्ग असत्थपरिणयं अफाप्लुयं जाव णो पडिगाहिज्जा' इस तरह का कोई दूसरा भी जल में उत्पन्न होने वाला कन्द रूप वनस्पति विशेष आम-कच्चा है तथा अशस्त्रपरिणत शस्त्रोपहत नहीं है अर्थात् चीराफाडा नहीं गया है इस प्रकार के सभी कन्दों को अप्रासुक-सचित्त तथा यावत् -अनेषणीय-आधाकर्मादि दोषों से युक्त समझ હવે કાચા શેરડીના સાંઠા કે ટુકડા વિગેરેને ઉદ્દેશીને તેનો નિષેધ કરે છે – टी14-से भिवस्खवा भिक्खुणी वा' ते पूरित साधु सामी 'गाहावइकुलं जाव' ७२५ श्राप४॥ ३२मा यावत् मिक्षा सामनी २छायी 'पविद्वे समाणे' प्रवेश ४रीने से जं पुण एवं जाणिज्जा' तेमना anyामा समावे-'इच्छुमेरगं वा' छ। विनाना शेरीना ४४. 2. 1241 अंककरेलुयं वा' ५४ ४२ यु नामनी वनपति छ, २५२१। 'कसेरुगं वा' से३४-शोर नामाना ४.६ विशेष छ. १२१। 'सिंघाडगं वा' पाामा थाशाया। छ. २०११ 'पुतिआलुगं वा' पूतिमा नामनी पनपति विशेष छ. म वामा साव मथ। 'अण्णयर वा तहप्पगार मी तनारेमा पहा थनार ४६३५ पानात डाय ते 'आमगं' या डाय तथा 'असत्थपरिणय' २२५ परिणत थयेन य त माय ४२ मा ४ आने 'अफासुय' सायत्त यावत् अनेषणीय भाषामा दोषाधी युत સમજીને સાધુ સાધી એ તે લેવા ન જોઈએ કારણ કે આવા પ્રકારના કાચી શેરડીના श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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