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________________ २१४ आचारांगसूत्रे णग्गोहपवालं वा, पिलुंखुपवालं वा, णीपूरपवालं वा, सल्लइपवालं वा, अण्णयरं वा तहप्पगारं पवालजायं आमगं असत्थपरिणयं अप्फासुयं अणेसणिज्जं जाय णो पडिगाहिज्जा ॥८२॥ छाया-स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा गृहपतिकुलं यावत् प्रविष्टः सन् सयत् पुनरेवं प्रवालजातं जानीयात्-तद्यथा-अश्वत्थप्रवालं वा, न्यग्रोध प्रवालं वा, प्लक्षप्रवालं वा, निपुरप्रवालं वा शल्लकी प्रवालं वा अन्यतरद तथा प्रकारं प्रवाल जातम् आमकम् अशस्त्रपरिणतम् अप्रासुकम् अनेषणीयम् यावत् नो प्रतिगृह्णीयात् ।।८२॥ टीको-अथ अश्वत्थादि किशलयसामान्य मधिकृत्य तनिषेधं वक्तुमाह-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा स पूर्वोक्तो भिक्षुर्वा भिक्षकी वा 'गाहावइ कुलं' गृहपतिकुलम् 'जाव पविटे समाणे' यावत्-पिण्डपातप्रतिज्ञया भिक्षालाभाथै प्रविष्टः सन् ‘से जं पुण एवं पवालजायं जाणिज्जा' स भावभिक्षुः यदि पुनरेवं-वक्ष्यमाणरीत्या प्रवालजातम्-किशलयसामान्य जातम् जानीयात्-'तं जहा-आसोत्थपवालं या' तद्यथा-अश्वत्यप्रवालं वा-पिप्पलकिश. लयं चा 'णगोहपवालं वा' न्यग्रोधप्रवालं वा-वटकिशलयं वा 'पिलंखु पवालं वा' प्लक्षप्रवालं वा-लक्षकिशलयं वा 'णीपूरपवालं वा' निपुरप्रवालं वा- नदी वृक्षविशेषकिशलयं या 'सल्लइपवालं वा' शल्लकीप्रवालं वा-शल्लकी नाम वृक्ष विशेषकिशलयं वा 'अण्णयरं ____टीकार्य-अब पिप्पल वगैरह के नये किसलय-पत्त को लक्ष्य कर उसका निषेध करते हैं-से भिक्खू वा मिक्खुणी वा गाहाचइ कुलं जाव पविट्टे समाणे' वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु और भिक्षुकी-साध्वी गृहपति-गृहस्थ श्रावक के घर में यावतू-पिण्डपात की प्रतिज्ञा से-भिक्षा लाभ की आशा से प्रविष्ट होकर यदि वह साधु और साध्वी यदि से पुण एवं पवालजायं जाणिज्जा' ऐसा वक्ष्यमाणरीति से प्रवाल जात-किशलय-नये पत्ते को जानले कि 'तं जहा-आसोत्थपवालं चा' जैसा कि-अश्वत्थ प्रवाल-पिप्पल का प्रवाल-नया फिसलय है या 'णग्गोह पवालं वा' न्यग्रोध प्रवाल-वट का नया पत्ता है अथवा 'पिलखुपवालं वा' प्लक्ष प्रवाल-पाकर का नया पत्ता है अथवा 'णीपूरपवालं या' निपुर प्रवाल -नदी निकटवर्ती वृक्षविशेषका नया पत्ता है या 'सल्लहपवालं ' હવે પીપળા વિગેરેના નવા અંકુરને ઉદ્દેશીને તેને નિષેધ કરે છે टी-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूजित साधु मगर साकी 'गाहावइकुलं जाव' अ६२५ श्राप४ना ५२मां यावत् मिक्षा सामनी थी 'पविठू समाणे' प्रवेश ४शन 'से जं पुण एवंपवालजाय जाणिज्जा' तेयान नपामा नयापानन। ४२ छे ते मारे छ भ४-'असोत्थाबाल वा' पीना नया पान छ. ५५0 णग्गोह पवालं वा' ५३ नाना पान छ अथवा पिलुंखुपचालं पा सक्षन नपा पान छ. अथ। 'णीपूरपवाल श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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