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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंघ २ उ. ८ सू० ७७ पिण्डेषणाध्ययननिरूपणम् २०३ पानकं वा 'मुद्दियापाणगं वा' मृद्वीकापानकं वा-द्राक्षापानकमित्यर्थः 'दाडिमपाणगं वा' दाडिमपानकं वा 'खज्जूरपाणगं वा' खजूरपानकम् वा 'नालियेरपाणगं वा' नारिकेलपानक वा 'करीरपाणगं वा' करीरपानकं वा 'कोलपाणगं वा' कोलपानकं वा-बदरीफलपानकम, 'आमलपाणगं वा' आमलकपानकं वा-घात्रीफलपानकमित्यर्थः 'चिंचापाणगं वा' चिञ्चापानकम् वा -तितिण्डीफलपानकमित्यर्थः 'अन्नयरं वा तह पगारं' अन्यतरद् वा-अन्यद् वा तथाप्रकारकं तत्समानम् 'पाणगजायं' पानकजातम् पानकम् 'सअद्वियं सास्थिकम्-अस्थना सहितम. अस्थिशब्देना (गुठली) इति भाषायां प्रसिद्धं गृह्य ते 'सकणुयं' सकणुकम् कणुकेन त्वचा सहितम् सकणुकम् त्वक्सहितम् 'सबीयगं' सबीनकम् बीजसहितम् आम्रफलादिपानक मित्यर्थः 'असंजए' असंयतः-गृहस्थः भिक्खुपडियाए' भिक्षुप्रतिज्ञया साधुनिमित्तम् 'छन्बेण वा' वंशस्वनिर्मितच्छब्बकेन चालनीरूपेण वा 'दूसेण वा' दृष्येण वा वस्त्रेण 'वालगेण वा' चालेन वा-गवादिवालधिवालनिर्मितचालनकेन वा 'आविलियाण' आपीडय-त्वगबीजाकदम्ब फल को धोने का पानी है तथा 'माउलिंगपाणगं' मातुलिंग पानक-पित्तोझिया बिजोरा' को धोनेका पानी है एवं 'मुद्दियापाणगं वा' मृहीका पानकद्राक्षा का पानी है एवं 'दाडिम पाणगंवा दाडिम पानक-दाडिम का पानी है या 'खज्जूरपाणगंवा' खजूर का पानी है एवं 'णारियेर पाणगंया' नारियल का पानी है, तथा 'करीर पाणगंवा करीर पोनक-करीर नामका वृक्ष विशेष का पानी है या 'कोल पाणगंवा' कोल पानक-बदरी फल का पानी है या आमलगपाणगंवा' आमलक पानक-आंवला-धात्री का पानी है या 'चिंचापाणगं वा' चिंचापानकफल तितिवडी तेतरि का पानी है एवं 'अन्नयरं वा तहप्पगारं पाणगजायं अन्य कोई दूसरी प्रकार का भी इसी तरह का पानक जात-पानी य 'सअहियं अस्थि गुठलो से युक्त हो या 'सकणुयं' कणुक-त्वचा छिलका सहित हो या 'सबीयगं' वीज बोहन से युक्त हो ऐसा देख ले या जान ले और 'असंजए भिक्खुपडियाए 'छब्बेण वा, दूसेण वा, वालगेण चा, आविलियाणं, परिबीलियाण, परिसावियाण 'आहटु दलइज्जा' गृहस्थ श्रावक यदि साधु को भिक्षा देने की इच्छा से पाणी अथवा 'मुद्दियापाणगं वा' द्राक्षनु पाणी अथवा 'दाडिमपाणगं वा' हम धोयेस पाणी अथवा 'खज्जूरपाणगं वा' पर धोये पाणी 24240 ‘णालिएरपाणगं वा' नाजीयेरनु पाणी १५॥ 'करीरपाणगं वा' ४१२ नामना वृक्ष विशेषनु पाणी अथवा 'कोलपाणगं वा' मार घायेस पाणी अथवा 'आमलगपाणगं वा' मामा घायर पी मथ। 'चिंचापाणगं वा' तित सनुपाणी ५५वा 'अण्णयरं वा तहप्पगारं' मान्नु । म प्रा२नु 'पाणगजाय' पाणी-पान ४d 'सअद्रियादी युद्धत डाय २५५१'सकणुयं छाताडाय 'सबीयगं' भी वाणु अाय वे मन ‘असंजर' असयत १७२५ श्रा१४ 'भिक्खुपडियाए साधुन मिक्षा २५वानी ४२छ।थी 'छब्बेण वा' यांसनी छालथी मनावर यावीथी 'दूसेण वा पाया 'चालग्गेण वा' यभरी शायना पाणथी मनात सारणीथी म241 'आविलियाण' छात, भी श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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