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________________ - - १९१० आचारांगसूत्रे अनगन्तव्या 'सम्प्रति प्रथममहाव्रतस्य चतुर्थी भावना प्ररूपयितुमाह-'अहावरा चउत्था भावणा'-प्रथ-अपरा-प्रन्या चतुर्थी भावना प्ररूप्यते-'आयाणभंडमत्तनिवखेवणासमिए से निग्गये' आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणा समित:-भाण्डोपकरणसमितियुक्तः-यतनापूर्वकं यः साधुः पात्राद्युपकरणं गृह्णाति, यतनापूर्वकमेव उत्थापयति संस्थापयति च स निर्ग्रन्थः साधुरुच्यते 'नो अणायाणभंडगत्तनिवखेवणासमिए' नो अनादानभाण्डमात्रनिक्षेपणासमितः-नो आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणा समितिरहितः साधुः कदाचिदपि स्यात् यतः केलीबूधा-आयाणमेयं' केवली- केवलज्ञानी भगवान् तीर्थकृद् ब्रूयात्-कथयति-उक्तवान् वा किमित्याह-आदानम्कर्मब धकारणम् एतत्-साधोः आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणा रहितत्वम् यस्मात् 'आयाणभंडमत्तनिक्खेवणाऽसमिए आदानभाण्डमावनिक्षेगाऽसमितः आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणासमितिरहितः ___अब सर्व प्राणातिपात विरमण रूप प्रधम महावत को चोयो भावना बतलाते हैं-'अहावरा व उत्था भावणा' यह अपरा अन्या चौथी भावना समझनी चाहिये कि-'आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए'- आदान भाण्ड मात्र निक्षेपणा समिति याने भाण्डोपकरण समिति युक्त होकर जो साधु यतना पूर्वक हो पात्र वगैरह उपकरण जात को ग्रहण करता है और यतना पूर्वक ही उठाता है और रखता है 'से निग्गंथे वही वास्तव में सच्चा निर्घन्ध साधु कहा जा सकता है किन्तु'णो अणायाणभंडमत्तनिकखेवणासमिए'-जो साधु आदान भाण्ड पात्रादि उपकरण की निक्षेपण समिति रहित है वह सच्चा निर्ग्रन्थ जैन साधु नहीं हो सकता क्योंकि - केवलीबूया' केवलज्ञानी भगवान् श्री महावीर स्वामीने कहा है कि-'आयाणमेथं आयाणभंडमत्तनिवेवणाऽसमिए' यह साधु का आदानभाण्ड मात्र निक्षेपणा का यतना रहित होना आदान-कर्म बंधन का कारण माना जाता है क्योंकि आदान भाण्डपात्र के निक्षेपण स्थापन को समिति याने यतना साधु उपाय छे. 'तच्चा भावणा' भारीतनी मी भावना सभापी. હવે સર્વ પ્રાણાતિપાત વિરમણ રૂપ પહેલા મહાવ્રતની ચેથી ભાવના બતાવવામાં आवे छे.-'अहावरा च उत्था भावणा' । योथी सापना मा रीते सभी -'आयाणभंडमत्त निक्खेवणा समिए' माहान His मात्र निक्षेप समिति अर्थात् मांडा५४२९४ समिति યુક્ત થઇને જે સાધુ યતના પૂર્વક જ પાત્ર વિગેરે ઉપકરણને ગ્રહણ કરે છે. અને યતના ५४ ०१ 381 छे. माने राणे छ. 'से निभाथे मेरी पास्त१ि४ रीते साया निन्य साधु उपाय छे. ५२'तु 'णा अणायाणभंडमत्त निखेवणासमिए' रे साधु माहान मां3 पात्रा ઉપકરણની નિક્ષેપણ સમિતિથી રહિત છે, તે સાચા નિગ્રંથ જૈન સાધુ હેતા નથી. म है 'केवलीबूया आयागमेय' भ - शानी भवान् श्रीमहावीर स्वामी ४ो छ કે-સાધુનું આદાનભાડમાત્ર નિક્ષેપણની યતના રહિત હોવું એ આદાન અર્થાત કર્મબંધનું ४२९ भानामा भाव 2. भ -'आयाणभंडणिक्खेवणाऽयमिए' माहान ais पानी श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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