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________________ १०९० आचारांगसूत्रे रतः 'बारसवासा वीइक्कंता' द्वादशवर्षाणि व्यतिक्रान्तानि - व्यतीतानि 'तेरस रस य वासस परियार' त्रयोदशस्य च वर्षस्य पर्याये - मध्ये 'वट्टमाणस्स' वर्तमानस्य तिष्ठतो महावीरस्येति पूर्वेणान्वयः 'जे से गिम्हाणं दुच्चे मासे' योऽसौ ग्रीष्माणाम् ऋतुनाम् द्वितीयो मासः 'चउत्थे पक्खे' चतुर्थः पक्षः ' व साहसुद्धे' वैशाखशुद्धः - वैशाखशुक्लपक्षः आसीत् ' तस्स णं साहसुद्धस' तस्य खलु वैशाखशुद्धस्य - वैशाख शुक्लपक्षस्य 'दसमीपक्खेणं सुव्वणं दिवसेणं' दशमीपक्षे खलु - दशम्यां तिथौ, सुव्रतेन दिवसेन - सुत्र नामके दिवसे इत्यर्थः 'विजएणं मुहतेणं' विजयेन मुहूर्तेन - विजयमुहर्ते 'हत्त्तराहिं नक्ख तेणं' हस्तोत्तराभिः- उत्तराफाल्गुनीरूपाभिः नक्षत्रेण 'जोगोवग एणं' योगोपगतेन- चन्द्रमसा योगं सम्बन्धम् उपगतेन प्राप्तेन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रेणेत्यर्थः उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रेण सह योगमुपगते चन्द्रमसीतिभावः 'पाईनगामिणीए छायाए' प्राचीनगामिन्यां छायायाम् - पूर्वदिशि लम्बमानायां छायायामित्यर्थः खलु उसके बाद अर्थात् भगवान् श्री महावीर स्वामी के द्वारा तीन प्रकार के आध्यात्मिक- आधिदैविक और आधिभौतिक उपसर्गों को सहन करने के बाद श्रमण भगवान् श्री महावीर स्वामी के उपर्युक्त बिहार से विचरते हुए 'बारस वासा वीsaint' बारह वर्ष बीत गये और 'तेरसमस्स य वासस्स परियाए वहमाणस्स' तेरहवां वर्ष के मध्य में रहते हुए भगवान् श्री महावीर स्वामी को 'जे से गिम्हाणं दुच्चे मासे' जो वह प्रसिद्ध ग्रीष्म ऋतु का द्वितीय मास और 'चथे पक्खे' चतुर्थ पक्ष याने 'वहसाहसुद्धे' वैशाख शुक्ल पक्ष था 'तहस णं वेसाहसुद्धस्स' उस वैशाख शुक्ल पक्ष के 'दसमी पक्खेणं' दशमी तिथि में 'सुव्व णं दिवसे णं विजएणं मुहुत्तेणं' सुव्रत नाम के दिवस में और विजय नाम के मुहूर्त में 'हत्तराहिं नक्खत्तेणं' हस्तोत्तर याने उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में 'जोगोवगणं' योग प्राप्त होने पर अर्थात् उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के साथ चंद्रमा का योग होने पर तथा 'पाईणगामिणीए' पूर्व दिशा की और लंबायमान 'छायाए' छाया होने पर याने पूर्व दिशा तरफ छाया के लंबायमान होने पर श्रभणु भगवान् श्रीमहावीर स्वाभीना 'एएणं विहारेणं' उपरोक्त विहारथी बिहरमाणस्स' विहार ४२|| २|| 'बारसवासा विइक्कंता,' भार वर्ष पुरा थया भने 'तेरसमस्स य वासरस वट्टमाणस्स' तेरभां वर्षभां भगवान् श्रीमहावीर स्वाभीने 'जे से गिम्हाणं दुच्चे मासे' प्रसिद्ध ग्रीष्म ऋतुना जील भास भने 'चउत्थे पक्खे' थोथु यणवाडीयु अर्थात् ' वडसाहसुद्ध' वैशाय भासना शुद्ध पक्षमां तथा 'तस्स वेसाहसुद्धस्स दसमी पक्खेणं' से वैशाम शुद्ध पक्षनी हशमी तिथिना हिवसे 'सुव्वएणं दिवसेणं' सुव्रतनाभना दिवसमा भने 'विजएणं मुहुत्तेण' विनय नामना मुहूर्त भां 'हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं' स्तोत्तरा अर्थात् उत्तरागुनी नक्षत्रमां 'जोगोत्रगणं' योग प्राप्त थतां अर्थात् उत्तरशल्गुनी नक्षत्रनी साथै यन्द्रमान योग थयो त्यारे 'पईणगामिणी छायाए' तथा पूर्व दिशा तर३ छाया सांणी थह त्यारे 'बीयत्ताए શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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