________________
५७६
आचाराङ्गसूत्रे ___ उद्देशकाथमुपसंहरन्नाह–'एस विही' इत्यादि । मूलम्-एस विही अणुकतो, माहणेण मइमया।
बहुसो अपडिन्नेण, भगवया एवं रीयांत-त्तिबेमि॥१६॥ छाया--एष विधिरनुक्रान्तो, माहनेन मतिमता। ___ बहुशोऽप्रतिज्ञेन, भगवता, एवं रोयन्ते ॥ इति ब्रवीमि ॥१६॥
अस्य व्याख्या-अस्यैवाध्ययनस्य प्रथमोद्देशगताऽन्तिमगाथा(२३ व्याख्यावद् विज्ञेया । इति ब्रवीमीत्यर्थस्तूक्त एव ॥ १६ ॥
॥ नवमाध्ययनस्य द्वितीय उद्देशः समाप्तः ॥९-२॥ ग्रन्थिका जिससे विनाश हो वह द्रव-संयम, अर्थात् यथाख्यात चारित्र है, यह द्रव जिसके मौजूद हो वह द्रविक है। यथाख्यातचारित्रकी आराधनासे ही जीव अपने अवशिष्ट चार अघातिया कर्मों का नाश कर मुक्तिस्थानका पात्र हो जाता है, इसके विना नहीं, ऐसा शास्त्रसंमत सिद्धान्त है। "अधोविकट" शब्द कुडयादि-भीत आदिरहित स्थानका वाचक है । वह स्थान कि जिसमें भीत आदिका आवरण नहीं हो, चौहटा ही ऐसा होता है, क्यों कि वह चारों ओरसे बिलकुल खुला हुआ रहता है, और ऐसे ही स्थानमें सब तरफसे बहुत जोरकी हवा आती है। 'शमिता' शब्दका अर्थ-उपशान्त भाव है। राग द्वेषका संबंध जिस भावमें नहीं होता है वही उपशान्तभाव कहा गया है ॥१५॥
अब सूत्रकार इस उद्देशके अर्थका उपसंहार करते हुए कहते हैं-- 'एस विही' इत्यादि। યથાખ્યાત ચારિત્રની આરાધનાથીજ જીવ પિતાના અવશિષ્ટ ચાર અઘાતિયા કને નાશ કરી મુક્તિસ્થાન મેળવવા ભાગ્યશાળી બની રહે છે, એના વગર નહીં,
वो शासभत सिद्धांत छ. “ अधोविकट" ०५४ मीत वगेरेथी २डित એવા સ્થાનને વાચક છે. એ સ્થાન કે જેને ભીત વગેરેને બચાવ ન હોય તેને ઉઘાડું સ્થાન કહેવામાં આવે છે, કેમકે ચારે તરફથી તે બીલકુલ ખુલ્લું હોય છે અને એવા સ્થાનમાં ચારે તરફથી મોટા પ્રમાણમાં ખુલ્લી હવા આવતી હોય छ. शमिता शहना म ५id मार छ. २२ देषन स रे मामi નથી તે ઉપશાન્ત ભાવ કહેવાય છે. (૧૫)
वे सूत्रा२ २१॥ उदेशना मर्थन। उपस डा२ ४२di ४ छ–'एस विही' छत्यादि
श्री. सायसूत्र : 3