________________
५४५
विषय १४ सातवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । १५ गृहस्थलोग भगवानके पास एकत्रित होते तो वे उनकी
ओर लक्ष न दे कर अपने ध्यानमें ही मन रहते । यदि वे गृहस्थ उनसे कुछ पूछते तो चुपचाप वहांसे चल देते। वे ध्यानसे कभी भी विचलित नहीं होते।
५४६ १६ आठवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया।
५४६ १७ भगवानको कोई अभिवादन करता था तो वे उससे प्रसन्नता
नहीं प्रगट करते थे, और यदि कोई अभिवादन न करे तो उस पर क्रुद्ध भी नहीं होते थे। अनार्य देशोंमें भगवान् को यदि कोई ताडन आदि करता तो भी उनका भाव कलुषित नहीं होता।
५४६-५४७ १८ नवमी गाथाका अवतरण, गाथा और छाया ।
भगवान् महावीरस्वामी कठोर वचनोंको सहते थे, नृत्य, गीत, दण्डयुद्ध और मुष्टियुद्ध आदिको सुनने और देखनेके लिये उन्हें कुतूहलता नहीं होती।
५४८ २० दसवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया।
५४८ २१ भगवान्ने कभी कभा परस्पर कामकथामें संलग्न स्त्रियोंको
देखा, परन्तु उन्हें राग नहीं हुआ। भगवान्ने संयमकी
आराधनानिमित्त परीपहोपसर्गों को कुछ भी नहीं गिना। ५४८-५४९ २२ ग्यारहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । २३ भगवान् साधिक दो वर्ष सचित्त जलका परित्याग कर
एकस्व भावना भाते और क्रोध छोडते हुए, सम्यक्त्वभावना
एवं शान्तिसे युक्त हो कर प्रव्रज्या ग्रहण की। ५४९-५५० २४ बारहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया।
५५०
५४७
५४९
श्री. मायाग सूत्र : 3