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विषय
पृष्ठाङ्क मूल्यवान नहीं होता है । इस प्रकारके साधु ग्रामान्तरों में निर्द्वन्द्व विचरते हैं । वस्त्रधारी साधुओंकी यही तीन वस्त्र और चौथा पात्ररूप सामग्री होती है।
४४१-४४४ ३ द्वितीय सूत्रका अवतरण, द्वितीय सूत्र और छाया ।
४४४ ४ हेमन्त ऋतुके बीतने पर ग्रीष्म ऋतुके प्रारम्भमें साधुको
जीर्ण वस्त्रोंका परित्याग कर देना चाहिये । अथवा शीतसमय बीतने पर भी क्षेत्र, काल और पुरुष स्वभावके कारण यदि शीतबाधा हो तो तीनों वस्त्रोंको धारण करे, अर्थात्शीत लगने पर तीनों वस्त्रोंको धारण करे, शीत न लगे
और उसकी आशङ्का हो तो अपने पास रखे, त्यागे नहीं। अथवा शीतकी अल्पतामें एक वस्त्रको धारण करे, और जब शीत बिल्कुल ही न रहे तब अचेल अर्थात् प्रावरणवस्त्र रहित हो जाय । इस प्रकारसे मुनिको आत्मा लघुतासे युक्त हो जाती है । इस प्रकारसे वस्त्रत्याग करनेवाले मुनिको कोयक्लेशनामक तप भी होता है।
४४५-४४७ ५ तृतीय सूत्रका अवतरण, तृतीय सूत्र और छाया।
४४८ ६ यह सब भगवान महावीरने कहा है; इस लिये मुनि इस
सबका अच्छी तरह विचार कर सचेल और अचेल अवस्थाओं में साम्यभाव ही रखें।
४४८ ७ चतुर्थ सूत्रका अवसरण, चतुर्थ सूत्र और छाया ।
४४९ ८ जिस मुनिको यह होता है कि मैं रोगातकोंसे अथवा शीतादि
या स्त्रीके उपसर्गसे स्पृष्ट हो गया हूँ, मैं इनको सह नहीं सकता हूँ, वह वसुमान् मुनि उस समय अपने अन्तःकरणसे हेय और उपादेयका विचार कर उन उपसौका प्रतिकार नहीं करते हैं। ऐसे तपस्वी मुनि स्त्रियोंके उपसर्ग उपस्थित होने पर वैहायस आदि मरणद्वारा शरीर छोड देते हैं परन्तु चारित्रको नहीं छोड़ते हैं। ऐसे मुनिका वह मरण बालमरण
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩