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________________ [४३] ॥ अथ षष्ठ उद्देश ॥ विषय १ पञ्चम उद्देशके साथ छठे उद्देशका सम्बन्धकथन, और प्रथम सूत्रका अवतरण । २००-२०१ २ प्रथम सूत्र और उसकी छाया । २०१ ३ कितनेक लोग तीर्थंकरसे अनुपदिष्ट धर्माभास मार्गमें उद्योगशाली होते हैं और अपनेको तीर्थंकरोपदिष्ट धर्ममार्ग के संयमी समझते हैं निन्दित मार्गके अनुयायी कितनेक लोग तीर्थकरोंसे अनुपदिष्ट धर्ममार्गमें सर्वथा अनुद्योगी होते हैं । हे शिष्य ! तुम ऐसे मत बनो पूर्वोक्त दोनों प्रकारका न बनना यह तीर्थंकरोंका अभिमत है। शिष्यको सर्वदा आचार्यके संकेतानुसारी होना चाहिये । २०१-२०४ ४ द्वितीय सूत्रका अवतरण, द्वितीय सूत्र और छाया। २०५ ५ जो परीपहोपसर्ग अथवा घातिकर्म चतुष्टयको पराजित करके स्वयं उन परीषहोपसर्गोंसे या परतीथिकोंसे पराजित न हो कर जिनोक्त तत्त्वकी जिज्ञासा करते हैं वह किसीका आलम्बन नहीं लेते है। रत्नत्रयकी आराधना करनेवाले उन महापुरुषोंका मन बहिर्वर्ती नहीं होता । वे पूर्वाचार्यका पारम्परिक उपदेशसे वीतरागके वचनोंका अभिज्ञ हो जाते है, वे परतैर्थिकोंका मतका खण्डन करते हैं । तीर्थंकरोक्त तत्त्वोंको कितनेक संयमी अपनी सहज बुद्धिसे समझ लेते हैं, आहेत आगमके अभ्याससे उन्हें समझते है, और कितनेक आचार्य आदिके उपदेशद्वारा उन्हें समझते हैं। २०५-२१५ ६ तृतीय सूत्रका अवतरण, तृतीय सूत्र और छाया। २१६ ७ मेधावी मुनि, वीतरागोपदेश और मिथ्यादृष्टियोंके मतको तुलनात्मक समीक्षा करके, वीतरागोपदेयको उपादेय और मिथ्याष्टियोंके मतको हेय समझे, कभी भी बीतरागोपदेशका श्री. साय॥२२॥ सूत्र : 3
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
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