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________________ २७० ७० ध्यानकल्पतरू. वश कर सक्ते हो? तो वो येही कहेगाकी वहोतही उपाय करते हैं, परन्तु पापी मन वशमें नहीं रहता है क्या करें! ऐसे मनको वशमें करनेका सहज उपाय इस श्लोकमें कहा है की, निरंतर अभ्यास से जो वै राग्य प्राप्त करता है. वो मन वशमें कर सकेगा. पंच इन्द्रियोंके छिद्रों कर जो शब्दादी पुद्गलका प्रवेश होता है. उन्हे ग्रहण कर मन राग द्वेषमय प्रणम, सुखी दुःखी बनता है. उस राग द्वेषमें प्रणमते हुये मनको रोकना उसीका नाम वैराग्य. राग द्वेष प्रणतीमें प्रणमनेका मनका अनंत कालका स्वभाव पड रहा है. उससे एकाएक मन रुकना बहुतही मुशकिल है. इस लिये मनको रोकनेका अभ्यास करना चाहीये जैसे जोशमय आते नदीके पूरको कोइ एकदम रोकना चाहे तो कदापी नहीं रुक सकेगा! परन्तु उसे पलटानेका जो प्रयत्न करे तो हो सके. बस तैसेही म नके वेगको पलटानेके प्रयत्नकी अभ्यास की आवश्यकता हैं. वो अभ्यास ऐसा चाहीये की, जिन २ शब्दा. दी विषय मय पुगलोमें मन प्रणमें उसीही वक्त उन पुद्गलोंके स्वभाव गुण और फलके तर्फ मनको फिरा ना की यह क्षिणिक और कट्ट फलद्रप हैं. ऐसा हरव
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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