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________________ उपशाखा-शुभध्यान. २६९ असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् । अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च ग्रह्यते भगवद्गीता अर्थ-श्री कृष्ण कहते हैं की हे अर्जुन! मनको वश करना बहुतही मुशकिल है. क्यों कि मन अती चपल है। परन्तु निरंतर अभ्याससे और वैराग्यसें मन वश में हो सकता हैं: किसीसे भी पूछ देखो की भाइ तुम मनको बडा निर्दयी है छोटेले बच्चेपे राजभर दाल आप साधू बन गया और बेचारे उस बच्चेको परचक्री सता रहा है. यह सुणतेही राजऋषि क्रोधातुर हो उस परचक्रीके साथ मनामय संग्राम करने लगे उस वक्त तेने पूछना सुरु कियाथा) अनेक शैन्यका संहार का शत्रुको मारने चक्र लेनेके लिये शिरपे हाथ डाला के ( उस वक्त साती नर्क के दलीय भेले किये थे.) रुंद मुंड मस्तक पाया! उसी वक्त चौंक ..ये भा। अ.या के अरे! मेने साधू होके यह क्या जुलम किया ? यों पश्चाताप करने लगे. (उस वक्त सं चित कमे के दलिये क्षपन लगे) त्यों त्यों उच चडती गये और शुद्ध विचारमें एकाग्र होनेसे धन घातिक कर्म नष्ट हो गये तब कैवल ज्ञान दर्शनकी प्राप्ती होगइ (शुद्ध ध्यान में इत्नी प्रबलता है। यह सुण श्रणिक राजा वडे खुशहो गये भगतको और उन राजऋषि वगैरें साधुवों को नमस्कार कर निजस्थान गये. ___+'अतिचंचल मतिमुक्ष्म सुर्दुलभ वेगवतया चतः' हेमचंद्रान अर्थात—यहमन् अती हाचंचल होके अतीमुक्ष्म हैं इस लिय इसकी गतीको रोकना मुशकिल हैं
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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