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________________ तृतीयशाखा-धर्मध्यान १७५ १०८ प्र-मेंद कायसे होबें? उ-मदिरा मांसके भोगवनेसे. मेंद वालेकी हँसी करनेसे. १०९ प्र-अपञ्चाका रोग कायसे होवे? उ-साधू को खराब अहार देनेसे. .. ११० प्र-क्षयनरोग कायसे होवे ? हकीका वैपार करे, सेहत (मद्य) झाडे तो. १११ प्र-कुरूप बेडोल मुख कायसे होवे? उ-दा नेश्वरीकी निंदा करनेसे. मुखका बहुत शृंगार करनेसे. . ११२ प्र-छोड कायले रहे? उ-गर्भपात करनेसे. ११३ प्र-स्थानभ्रष्ट कायसे होवे? रस्ते परके झाड काटनेले. आश्रितों का आसारा छोडानसे. ११४.प्र-श्वेत कुष्ट कायसे होवे? गौवध, कंन्या विक्रय, करनेसे तथा साधू हो वृत भंग करनेसे. ११५ प्र-पुत्र वियोग कायसे होवे? उ--गाय, भेंस के बच्चेको दृध न पानसे. पशु पक्षीके पुत्र मारनेसे. ११६ प्र-बचपणमें मात पिता क्यों मरे ? सरण आयेकी घात करनेसे. मात पितका अपमान करनेसे. ११७ प्र--जलौंद्र कायसे होवे ? अमक्ष भक्षणेसे. ११८ प्र--दांत कायसै दुखे? अत्यंत रसनाकी लु ब्धतासे. अभक्ष भक्षणेसे. ११९ प्र- लम्बे दांत क्यों होवें? उ-घरोघर निंदा
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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