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________________ जीवन की राह सरल हो, यह आवश्यक नहीं है। अनेक बार वह टेढी-मेढी, ऊंची-नीची भी होती है। पूर्व जन्म के पापोदय के कारण, जीवन में ऐसी स्थिति आ जाती है जब व्यक्ति भटक जाता है। भटक जाना ही जीवन की राह का टेढापन है। जब व्यक्ति भटक जाता है तो उसकी उन्नति का द्वार बन्द हो जाता है। किसी के द्वारा प्रतिबोध मिलने पर भटका हुआ व्यक्ति पुनः सन्मार्ग पर आ जाता है। प्रायश्चित्त कर वह अपने को शुद्ध बना लेता है। तब जीवन की राह सरल हो जाती है और वह व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। ___अरणक और बिल्वमंगल के कथानकों में यही सत्य प्रगट हुआ है। अरणक का कथानक जैन कथा साहित्य से उदधृत है जबकि बिल्वमंगल का कथानक वैदिक कथा साहित्य से चुना गया है। आत्मज्ञान के लक्ष्यी अरणक मुनि एक महिला के आमंत्रण पर अपने लक्ष्य को विस्मृत करके राग-संसार में शान्ति खोजने के लिए प्रविष्ट हो जाते हैं। लेकिन मातृ-पुकार उनके वैराग्य के लिए पुनः संजीवनी सिद्ध होती है और वे राग के बन्धनों को झटक कर पुनः विराग के मग के राही हो जाते हैं। ब्राह्मणपुत्र बिल्वमंगल अपनी प्रियतमा की सामयिक सीख से प्रतिबुद्ध बनकर भगवान् की भक्ति के मार्ग पर निकलते हैं। लेकिन पुनः एक महिला के रूप पर रागासक्त होकर उसका अनुगमन करते हैं। उनका विवेक उन्हें झकझोरता है तो वे राग को उत्पन्न करने वाली अपनी आंखों को फोड़ लेते हैं तथा भगवान् को परमाधार बनाकर उनकी भक्ति में शेष जीवन को अतीत करते हैं। अरणक और बिल्वमंगल- दोनों चरित्रों में उत्थानपतन और पुनरुत्थान का एक समान दर्शन निहित है जो दो परम्पराओं की एकात्मकता का परिचायक है। ८ जैन धर्म एवं दिक धर्म की सांस्कृतिक एकता/314)
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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