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________________ 13. स्वतन्त्र विचारों की दार्शनिक अभिव्यक्ति 18-24 (1) ज्ञानकाण्ड की प्रमुखता तथा यज्ञविरोध......18 (2) यज्ञ की अवधारणा में परिष्कार.......... (3) ईश्वर सृष्टिकर्ता नहीं.. (4) जाति की अतात्त्विकता .... (5) आश्रम - व्यवस्था में लचीलापन.. (6) आस्तिकता का उदार मानदण्ड......... (7) एक ही लक्ष्य के विविध मार्ग होने की मान्यता..........22 (8) धर्म का प्रामाणिक स्रोत...... 14. सार्वजनीन आस्था के विचार - बिन्दु........... (1) धर्म की अवधारणा........ (2) मनुष्य योनि की श्रेष्ठता व दुर्लभता......... (3) साझे बुनियादी नैतिक मूल्य और सदाचार के मानदण्ड....... 19 15. जैन तीर्थकर और अवतार.... .20 ...20 ...21 23 24-53 .24 ..25 ........26 (4) कालचक्र व सांस्कृतिक विकास की मान्यताएं...... (कर्मभूमि की अवधारणा, कुलकर व्यवस्था) (5) भारतवर्ष - नामकरण... (6) राष्ट्रीय भावना के स्वर......... (7) गंगा देवी की महिमा......... (8) जैन तीर्थंकर ऋषभदेव और वैदिक त्रिदेव....39 (ऋषमदेव और वैदिक विष्णु, ऋषभदेव और वैदिक ब्रह्मा, ऋषभदेव की शिवतुल्यता, शिव व ऋषभ की एकता, पुरातात्त्विक साक्ष्यों से प्राचीनता) .29 .33 34 ..........36 53-55
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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