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________________ मंतर डोरा करावतां थांने वरजूंला । काई जूठो फैले भेम ॥१७॥ रोत सुधारो देश री नहीं वरजूंला । कांई गा करके शुभ गीत कदी नहीं वरजूला ॥१८॥ आज्ञा पति री पालतां नहीं वरजूला । कांई पूजोला श्रीनाथ कदी नहीं वरजूंला ॥१९॥ ॥ संथारा का स्तवन ॥ (तर्ज-भाव धरी नित्य पालजो।) संथारो प्यारो घणो, रत्न चितामणि जेम हो । भवियन । पांचवी गतिना पामणा, हीरा जड़िया हेम हो . भवियन ॥१॥ कायर रो काम छे नहीं, सूरा सन्मुख थाय हो भवियन । पंडित मरण प्रताप से, जन्म-मरण मिट जाय हो भवियन ॥२॥ आहार-पानी आदरे नहीं, नहीं करे मुख से हाय हो भवियन, तन-धन ममता त्यागने, जीव राशि खमाय हो भवियन ॥३॥ करो विशुद्ध आलोचना, लगा दो मुगती सुं ध्यान हो भवियन । ऐसी देवो मुझ ने वीरता, हो जावे परम कल्याण हो 206
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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