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________________ कोरट झगडा ले जाता थाने वरजूंला । __ कांई मुंडा कहसी लोग ॥८॥ शोर फटाका छोडतां थाने वरजूंला । __ कांई जिणसू लागे लाय ॥९॥ खरच अणूतो करतां थांने वरजूला। कांई करजो जिणसं होय ॥१०॥ झीणा कपडा पहरतां थांने वरजूंला। कांई जिण थी जावे लाज ॥११॥ नाटक थेटर देखता थांने वरजंला । ___ कांई जिणसू हाण अपार ॥१२॥ मोटा मगता पालतां थांने वरजूंला । ___कांई सुंड मुसडा होय ॥१३॥ भोजन करतां रातरा थांने वरजूंला। ___ कांई होवे पाप अमाप ॥१४॥ घी खिचडियाँ खावतां थांने वरजूंला। __ कांई जाकर कांण मुकाण ॥१५॥ टाबर नहीं भणवतां यांने वरजूंला। काई रह जावे वे ठोठ ॥१६॥ 205
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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