SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भावज तो आरतडी करे । कोमल वस्त्र लायने ओ, ये तो बनडी रो अंग जो पूछता। कुंकरा तिलक काकाजी करे ओ, मामा जी चावल चेडता ॥ सखियाँ तो मिल कर गावती ओ, ये तो कुंकुरा पगल्यां बाई चालिया ॥इति।। ॥ कांगसी-बाल सवांगने के वक्त बोलने का गीत ।। (तर्ज...- मारी हलदो गे रंग भुरग निपजे मालवा) बालक बनडी रा गज-गज केश, कुण सुलजावसी, बालक बनडी रा लम्बा-लम्बा केश, कुण सुलजाक्सी, रायजादी रा लम्बा-लम्बा केश, कुण सुलजावसी ॥ रायजादीरा गज-गज केश, कुण सुलजावसी ॥ बाटकडियां में तेल फुलेल, मरवारी कांगसी ।। बनडी री माता चतुर सुजान, वे सुलझावसी । बनडी रो भावज चतुर सुजान, वे सुलझावसी ॥ वे जुआँ-लिखां रा जतन कराय, हिंसा नहीं होवसी । मोतीडारी मांग भराय, कुंकरो तिलक है ॥ मेहन्दी हाथ पगां रे देय, रंग जो राचनी ॥ 98
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy