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________________ ।। उगटणा के समय बोलन का गात । (तर्ज --तू तो कर रायजादी उगटणो तूं तो कर रायजादा उगटगो, तू तो कर बनडी. बाई उगटणो ॥ ये तो गेहूँ ने गुज्जी रो अगटणो, सांये केसर कस्तुरी री बाल धणी ।। मामें चोलोरी कलियां री सुगंध घमी, हलदी रो रंग सुरंग घणो, ये तो पवनचक्की में मिलाय जो सती, उनरी शक्ति सब जल जावे करी । चक्की से उपयोग राखो करी. उनमें शक्ति ज्यादा रेने करी । चर्न रोग ने जिलारी नहीं आये करी, बनडा-बनी रे साता रे करो।। इति !! । स्नान के समय बोलने का गीत ।। ( तर्ज --- जठ नारो अन्त र लाडो दावसीजी ) बनडी तो बैठी बाजोट पेजी जठे माता पिता पधारिया जी ।। माताजी रे हाथ में कलश है ओ, ये तो अनछान्या पानी नहीं लाविया ॥ लेनडरा हाथ में कलश है ओ, ये ठंडा-ऊणा भेला करने नहीं लाविया ।। वनडी ने णावन करावता ओ, जठे वीरा जी ने भावज पधारिया ॥ स्नान करावे ये प्रेमसु ओ, भावज पगल्याये धोवता ॥ जठे मारी बहु परिवारी नावसी ओ, जठे
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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