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________________ पाँच रत्न घर में चार-चार जवान विधवा बहुओं को देखकर सेठ अपने भाग्य को कोसता रहता और उसके दो वर्ष बाद चौथे पुत्र लक्ष्मीकान्त का भी यही हाल हुआ। हे प्रभु ! ऐसे क्या घोर पाप 20000 किये थे मैंने हर बार मुझ पर ही यह वज्रपात होता है। मेरा धर्म कहाँ गया? | तीन वर्ष बीत गये। धीरे-धीरे समय की| लडकी वाला बोला- सेठजी. संसार में मौत मरहम से दिल के घाव भर गये। सेठ | सभी को आती है। कहते हैं रावण के एक लाख और पुरानी बातें भूल गया। एक दिन उसी नगर सगर चक्रवर्ती के साठ हजार पुत्र हुए और चले गये। फिर का एक सेठ आया। भी संसार का प्रवाह नहीं रुका। सेठनी ! आपका छोटा पुत्र ENTRY हरिकान्त विवाह योग्य हो गया । है। अब उसका रिश्ता कीजिए। सेठ झुंझला उठा 24NUXRONORAMEENA तो क्या आप भी चाहते हैं कि आपकी बेटी भी इन चारों की तरह भरी जवानी में विधवा हो जाये। नहीं, नहीं, मैं हरिकान्त का विवाह नहीं करूंगा। मरने से अच्छा है कि वह कुँवारा ही रहे।
SR No.006281
Book TitlePanch Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Education Board
PublisherJain Education Board
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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