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________________ पन्द्रह दीक्षित हुए हैं इसका विवरण इस काव्य में है । इस काव्य को छोड़कर रचित हुए हैं । इस तरह भाव में परिचित (संस्कृत में), और भी बहुत काव्य राजा कालक के विषय पर कथानक साहित्य कथाकोष साहित्य नाम में भी विशेष है । हरिसेनाचार्य (९३१ । ३२ AD ), वृहत् कथाकोष श्रीचन्द का ( ९४१ / ९७ AD) कथाकोष अपभ्रंश में, दशम शताब्दी में भद्रेश्वर का प्राकृत भाषा में लिखा हुआ कथावली और रामशेखर का प्रबंधकोष इस प्रसंग में बहुत उल्लेखनीय है । सोमचंद्र का ( १४४८ AD) कथामहोदधि संस्कृत और प्राकृत में १५७ आख्यायिकायुक्त है । हेम बिजयगणी ( १७०० AD) कथारत्नाकर में २५८ आख्यायिका है । यह ग्रन्थ मूलतः संस्कृत भाषा में लिखा हुआ है, किन्तु फिर भी इसमें महाराष्ट्री अपभ्रंश, प्राचीन हिन्दी और गुजराती भाषा का निदर्शन मिलता है । इसके अलावा और भी बहुत कथानक ग्रन्थ हैं जिनमें अपूर्व और अद्भुत आख्या - यिका का समावेश है । इसमें वर्धमानसूरि के शिष्य जिनेश्वरसूरि का कथाकोष ( २३१ गाथा ), देवभद्र का ( ११०१ AD) कथाकोष, शुभशील का कथाकोष ( अपभ्रंश में), सारंगपुर निवासी हर्षसिंह गणी का कथाकोष, विनयचन्द्र का कथाकोष ( १४० गाथा में ), देवेन्द्रगणी का कथामणिकोष इत्यादि ग्रन्थ प्रधान और उल्लेखयोग्य है | मुनि विमलकुमारजी का कथानक काव्य इसी परम्परा का एक समायोजन है । जैसे ऊपरलिखित कवियों ने अपना काव्य लिखकर यश प्राप्त किया उसी तरह मुनि विमलकुमारजी भी यह छह आख्यान मंजरी लिख कर उसी परम्परा से जुड़ गये हैं । विमलमुनि के साथ मेरा परिचय बहुत वर्षों से है । इनकी धीशक्ति, प्रज्ञा और रचनाकौशल में मैं परिचित हूं । कवित्व शक्ति इनमें स्वाभाविक है । कवि क्रान्तदर्शी और त्रिकालज्ञ होता है । इसी कारण वह दार्शनिक भी बन जाता है । इसीलिए हजारों वर्षों के पहले कवियों ने जो कुछ लिखा है वह आज भी आदरणीय और महत्त्वपूर्ण है । इसलिए राजतरंगिनी में कवि का एक सुंदर वर्णन किया गया है । कवि कौन हो सकता है ? जो कोऽन्यः कालमतिक्रांतं नेतुं प्रत्यक्षतां क्षमः । कविप्रजापतोंस्त्यक्त्वा रम्यनिर्माणशालिनः ॥ विमलमुनि इस विवरण के अनुसार सुप्रसिद्ध अतिक्रान्तकालजयी कवि हैं । इस छह आख्यान भाग में इनकी रचना शैली इतनी सरल, स्पष्ट और माधुर्यपूर्ण है कि पढ़ने से मालूम होता है कि कवि ने जन साधारण के लिए ही काव्य लिखा है । यह काव्य प्राकृत भाषा के पठन और पाठन के बहुत ही मूल्यवान् और उपयोगी है। बीच-बीच में प्राकृत सूत्र उल्लेख पूर्वक
SR No.006276
Book TitlePaia Padibimbo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages170
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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