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________________ चौदह चतुरवर्गचितामणि, पुष्पपरीक्षा, भोजप्रबंध, उत्तमकुमार चरित्र कथा, चंपकश्रेष्ठीकथा, पालगोपालकथा, सम्यक्त्व कौमुदी इत्यादि आख्यान ग्रन्थ संस्कृत तथा विश्वसाहित्य में सुप्रसिद्ध हैं । पैशाची भाषा में लिखित अधुना लुप्त गुणाढ्य की वृहत्कथा ग्रन्थ का सार अवलम्बन करके बुद्धस्वामी ने वृहत्कथा श्लोक संग्रह की रचना की है । इसके बाद क्षेमेन्दवृहद् कथा मंजरी एवं सोमदेव का कथासरित् रचित हुआ था । कथासंग्रह साहित्य में मेरुतुंग का प्रबंधचितामणि ( १३०६ AD), राजरामेश्वरसूरी का प्रबंधकोष (१३४० AD) उल्लेख योग्य है । इसके अलावा जैनियों ने कथानक साहित्य का सृजन किया है । इस तरह साहित्य का मूल उद्योक्ता जैन सम्प्रदाय है । कथानक शब्द का अर्थ छोटी कहानियों का पिटारा है । कथा का आनक अर्थात् पेटिका है । यद्यपि कथानक शब्द साहित्य में सुप्रचलित है, तथापि अलंकारियों ने साहित्य के विभाजन के रूप में इसका उल्लेख नहीं किया है । किन्तु अग्निपुराण (३३७.२० ) में गद्य साहित्य का विभाजन रूप से कथा निका, परिकहा और खण्ड कथा का उल्लेख है । आनन्दवर्धन धन्यालोक (३. ७) में उपर्युक्त विभाजन के साथ सरल कथा करके और भी एक विभाजन किया गया है। अभिनवगुप्त की टीका में इसकी विशद व्याख्या की गई है । लेकिन जैनियों ने जो कथानक साहित्य की सृष्टि की है वह तो संपूर्ण अलग तरह की है । मूलतः संग्रह के रूप से कथानक शब्द का व्यवहार किया गया है जैनियों ने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषा में गद्य और पद्य में बहुत ही कहानियां, आख्यान और उपाख्यान लिपिबद्ध करके भारतीय साहित्य को समृद्ध किया है । केवल संस्कृत और प्राकृत भाषा ही नहीं बल्कि आधुनिक प्रान्तीय भारतीय भाषा में भी इसका एक अभावनीय संकलन दृष्ट होता है । इसलिए प्राचीन गुजराती, राजस्थानी और हिन्दी में बहुत ही कथानक आख्यायिका का समावेश है । केवल भारतीय आर्यभाषा में ही नहीं अपितु प्राचीन तमिल, कन्नड, तेलगु, मलयालम इत्यादि भाषा में भी बहुत ही जैन कहानियां मिलती हैं । इस प्रकार के साहित्य को संक्षेप में लोकसाहित्य भी बोल सकते हैं । साधारणतया इस सब साहित्य का रचना काल त्रयोदश शताब्दी से शुरू हुआ है । गद्य और पद्य इस किस्म की कहानियों के वाहन हैं। अभी तक हम लोग यह मानते हैं - जैनियों के बीच में सबसे जनप्रिय प्राचीन साहित्य है - कालकाचार्य कथानक । इस काव्य के रचयिता और किस समय में लिखा हुआ है, यह हम लोगों को अभी तक मालूम नहीं है । साधारणतः कल्पसूत्र पाठ के अवसान में जैनियों ने इस काव्य की आवृत्ति की है । राजा कालक किस कारण से और किन भावों से जैन धर्म
SR No.006276
Book TitlePaia Padibimbo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages170
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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