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________________ दूसरा सर्ग १. प्राचीन काल में इस भारतवर्ष में हस्तिनापुर नामक समृद्ध, स्तिमित और ऋद्ध नगर था। २. वहां सुमुख नामक एक आढय गाथापति रहता था। वह सदा धर्म में लीन था। ३. एक बार उस नगर में धर्मघोष नामक आचार्य पांच सौ शिष्यों सहित आये। ४. उनका आगमन सुनकर उनके दर्शन करने के इच्छुक मनुष्य अहंपूर्विका वहां गये। ५. वे उनका दर्शन कर अपने को धन्य मानने लगे तथा उनका उपदेश सुनने लगे, जो जीवन का कल्याण करने वाला था। ६. उपदेश सुनकर वे अपने घर चले गये। मुनिजन भिक्षा के लिए उस नगर में गये। ७. उस आचार्य के सुदत्त नामक एक शिष्य था । वह मासक्षपण तप करता था । तपस्या में उसका मन लीन था । ८. एक बार वह मासक्षपण तप के पारणे के दिन उस नगर में भिक्षा के लिए गया। ९. उच्च, नीच कुलों में घूमता हुआ वह विना पूर्वसूचना के सुमुख गाथा पति के घर के पास में आया। १०. उसको अकल्पित अपने घर में आते हुए देखकर सुमुख गाथापति प्रसन्न होकर उसके सम्मुख गया ।। ११. उसको विधिपूर्वक वंदन कर उसने निवेदन किया-आज मेरा दिन धन्य है जो तुम्हारे दर्शन हुए हैं।
SR No.006276
Book TitlePaia Padibimbo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages170
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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