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________________ 6. स्याद् नास्ति व अ' उ वि नहीं है यदि पर्याय की अपेक्षा से विचार अवक्तव्य च (अ'. अ) उ करते हैं तो आत्मा नित्य नहीं है अवक्तव्य है। किन्तु यदि अनन्त अपेक्षाओं की दृष्टि से विचार करते है तो आत्मा अथवा अवक्तव्य है। अ उ वि नहीं है. (अ )य उ अवक्तव्य है। 7. स्याद् अस्ति च, अ उ वि है यदि द्रव्य दृष्टि से विचार करते है नास्ति च अ उ वि नहीं है तो आत्मा नित्य है और यदि पर्याय अवक्तव्य च (अ )य उ दृष्टि से विचार करते हैं तो आत्मा अवक्तव्य है। नित्य नहीं किन्तु यदि अपनी अथवा अनन्त अपेक्षाओं की दृष्टि से अ' 7 उ वि है विचार करते हैं तो आत्मा अवक्तव्य अ उ वि नहीं है है। (अ'. अ)य य उ अवक्तव्य है। -सप्तभंगी के प्रस्तुत सांकेतिक रूप में हमने केवल दो अपेक्षाओं का उल्लेख किया है किन्तु जैन विचारकों ने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ऐसी चार अपेक्षाएं मानी हैं, उसमें भी भाव-अपेक्षा व्यापक है उसमें वस्तु की अवस्थाओं (पर्यायों) एवं गुणों दोनों पर विचार किया जाता है। किन्तु यदि हम प्रत्येक अपेक्षा की संभावनाओं पर विचार करें तो ये अपेक्षाएं भी अनन्त होंगी क्योंकि वस्तुतत्त्व अनन्तधर्मात्मक है। अपेक्षाओं की इन विविध सम्भावनाओं पर विस्तार से विचार किया जा सकता है। किन्तु इस छोटी सी भूमिका में यह सम्भव नहीं है। इस सप्तभंगी का प्रथम भंग “स्यात् अस्ति" है। यह स्वचतुष्टय को अपेक्षा से तस्तु के भावात्मक धर्म या धर्मों का विधान करता है। जैसे अपने द्रव्य की अपेक्षा से यह घड़ा मिट्टी का है, क्षेत्र की अपेक्षा से इन्दौर नगर में बना हुआ है, काल की अपेक्षा से शिशिर ऋतु का बना हुआ है, भाव अर्थात् वर्तमान पर्याय की अपेक्षा से लाल रंग का है या घटाकार है आदि। इस प्रकार वस्तु के स्व द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव की अपेक्षा से उसके भावात्मक गुणों का विधान करना यह प्रथम 'अस्ति' नामक भंग का कार्य है। दूसरा स्यात् “नास्ति' नामक भंग वस्तुतत्त्व के अभावात्मक धर्म या धर्मों की अनुपस्थिति या नास्तित्व की सूचना देता है। वह यह बताता है कि वस्तु में स्व से भिन्न पर -चतुष्टय का अभाव है। जैसे यह घड़ा ताम्बे का नहीं है, भोपाल नगर से बना हुआ नहीं है, ग्रीष्म ऋतु का बना हुआ नहीं है, 548 जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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