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________________ सप्तभंगी के इस सांकेतिक प्रारूप के निर्माण में हमने चिन्हों का प्रयोग उनके सामने दर्शित अर्थों में किया है - अर्थ यदि-तो (हेतुफलाश्रित कथन) अपेक्षा (दृष्टिकोण) संयोजन (और) युगपत् (एकसाथ) अनन्तत्व व्याघातक उद्देश्य विधेय भंगों के आगमिक रूप भंगों के सांकेतिक रूप ठोस उदाहरण 1. स्यात् अस्ति अD उ वि है. यदि द्रव्य की अपेक्षा से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य हैं। 2. स्यात् अस्ति - अ उ वि नहीं है. यदि पर्याय की अपेक्षा से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य नहीं है। 3. स्यात् अस्ति नास्ति च अ> उ वि है. यदि द्रव्य की अपेक्षा से विचार अ°5 उ वि नहीं है. करते हैं तो आत्मा नित्य है और यदि पर्याय की अपेक्षा से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य नहीं है। 4. स्यात् अवक्तव्य (अ'. अ)य 5 उ यदि द्रव्य और पर्याय दोनों ही अवक्तव्य है. अपेक्षा से एक साथ विचार करते हैं तो आत्मा अवक्तव्य है। (क्योंकि दो भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से दो अलग-अलग कथन हो सकते हैं किन्तु एक कथन नहीं हो सकता 5. स्यात् अस्ति च अ उ वि है. (अ'. अ)य उ अवक्तव्य है. अथवा अ' उ वि है। (अ ) उ अवक्तव्य है। यदि द्रव्य की अपेक्षा से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य है किन्तु यदि आत्मा का द्रव्य, पर्याय दोनों या अनन्त अपेक्षाओं की दृष्टि से विचार करते हैं तो आत्मा अवक्तव्य है। जैन अनेकान्तदर्शन 547
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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