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________________ नथमल टांटिया ने भी ग्रन्थ स्टडीज इन जैनफिलासफी में जैनयोग और ध्यान पर पूरा एक अध्याय दिया है। विलियस जेम्स ने भी जैनयोग पर एक पुस्तक लिखी है, लेकिन इसमें उन्होंने जैन आचार शास्त्र पर ही विस्तार से चर्चा की है, जैनयोग पर बहुत ही कम लिखा गया है। उनके अनुसार जैनयोग का अर्थ है, आत्मोन्नति (Emancipation) का साधना मार्ग। जैनयोग के विषय में प्रो. पद्यनाम जैनी के ग्रन्थ जैन पाथ ऑफ व्यूरोफिकेशन का भी उल्लेख किया जा सकता है। आजकल हिन्दी में भी जैनयोग पर जो भी लिखा गया है, उसमें सर्वप्रथम और श्रेष्ठ ग्रन्थ है, मुनि नथमलजी (आचार्य महाप्रज्ञ जी) कृत जैनयोग। उन्होंने योग और प्रेक्षा ध्यान पर अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। ए.बी. डिगे का पी-एच डी. का शोधप्रबन्ध भी जैनयोग पर ही है और जो पी.वी. रिसर्च इंस्टीट्यूट वाराणसी से प्रकाशित भी है। यदि हम संक्षेप में जैनयोग के ऐतिहासिक विकास क्रम और उस पर अन्य भारतीय योग-पद्धतियों के प्रभाव के बारे में जानना चाहते हैं तो हमें जैनयोग पद्धति के विकास को निम्नाकित पाँच चरणों में विभाजित कर के देखना चाहिये1. आगम युग के पूर्व की स्थिति (ईसा पूर्व 6वीं शताब्दी), 2. आगमयुग (ई. पू. 8वीं शती से ईसा की 5वीं शती), 3. मध्यकाल (ईसा की 6 शती से 12वीं शती) 4. तन्त्र एवं कर्मकाण्ड का युग (ईसा की 13वीं शती से 19वीं शती), 5. आधुनिकयुग (20 वी शती)। 1. आगमपुर्वयुग भारत में योग और ध्यान की अवधारणा उतनी ही पुरातन है, जितनी स्वयमेव भारतीय संस्कृति है। अति प्राचीन काल से योग और ध्यान के संदर्भ में दो प्रकार के प्रमाण हमें मिलते हैं - 1. पुरातात्विक (Seclptural-evidences) और 2. साहित्यिक (Literary) प्रारम्भिक काल से ही योग और ध्यान के इन दोनो ही प्रकारों के प्रमाण उपलब्ध हैं, लेकिन यह कहना कठिन है कि ये योग और ६ यान के ये प्रमाण जैन-पद्धति का समर्थन करते हैं। हम केवल इतना कह सकते हैं कि प्राचीन योग और ध्यान के ये संदर्भ भारतीय श्रमणसंस्कृति से जुड़े हुए हैं। जैन, बौद्ध आजीवक, सांख्य-योग तथा अन्य छोटी-बड़ी श्रमण-परम्पराएँ इसी से उद्भूत हुई है। इसका कारण यह है कि ध्यान और योग को प्रत्येक भारतीय पद्धति में आधिकरिक रूप से अपनाया गया था। इसीलिए कतिपय जैन विद्वानों ने यह कहने का अति साहस भी किया है कि ये सन्दर्भ उनकी अपनी परम्परा के संदर्भ हैं! योग और ध्यान सम्बन्धी प्राचीन पुरातात्त्विक प्रमाण मोहनजोदड़ो और हरप्पा से 456 जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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