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________________ दर्शन है सत्यं शिवं सुन्दरं की त्रिवेणी अविद्या बंध का हेतु है, विद्या मोक्ष का कारण है । 'मेरा है' ऐसा मानता है, वह प्राणी बंधता है, 'मेरा नहीं' ऐसा मानता है वह प्राणी मुक्त हो जाता है। बौद्ध दर्शन के चार आर्य सत्य और क्या हैं ? यही ते हैं : ७ १. दुःख - हेय । २. समुदय - हे हेतु । ३. मार्ग — हानोपाय या मोक्ष - उपाय । ४. निरोध — हान या मोक्ष । यही तत्त्व हमें पातंजलि योगसूत्र और व्यास - भाष्य में मिलता है । योगदर्शन भी यही कहता है — "विवेकी के लिए यह संयोग दुःख है और दुःख हेय है। त्रिविध दुःख के थपेड़ों से थका हुआ मनुष्य उसके नाश के लिए जिज्ञासु बनता है । " 1 शिवमहिम्नस्तोत्र में कहा गया है— " रुचीनां वैचित्र्याद् ऋजुकुटिलनानापथजुषाम्, नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ॥" — जैसे सारे जल का गम्य है – “ समुद्र, वैसे सभी लोगों का गम्य (मंजिल) एक तू (शिव) ही है, रुचि - विचित्रता के कारण मार्ग अनेक हैं— कोई सीधा है, कोई वक्र ।' सत्य एक है. शोध-पद्धतियां अनेक । सत्य की शोध और सत्य का आचरण धर्म है । सम्प्रदाय या समाज सत्य - शोध की संस्थाएँ हैं; वे धर्म नहीं हैं । सम्प्रदाय अनेक बन गए, पर सत्य अनेक नहीं बना। सत्य शुद्ध, नित्य और शाश्वत (सदा रहने वाला) होता है । साधन के रूप में वह है अहिंसा और साध्य के रूप में वह है मोक्ष । मोक्ष मोक्ष और क्या है ? दुःख से सुख की ओर प्रस्थान और दुःख से मुक्ति । "निर्जरा - कर्मों के दूर होने से होने वाली जो आत्मा की विशुद्धि है, वह सुख है । पापकर्म दुःख है ।" भगवान महावीर की दृष्टि पाप के फल पर नहीं, पाप की जड़ पर प्रहार करती है । वे कहते हैं- " मूल का छेद करो। " " काम भोग क्षण मात्र के लिए सुख है. बहुत काल तक दुःख देने वाले हैं। ये संसार से मुक्त होने में बाधक हैं; इसलिए ये सुख नहीं हैं ।' " दुःख सबको अप्रिय है । संसार दुःखमय है ।" "जन्म दुःख है, बुढ़ापा दुःख है और मृत्यु दुःख हैं ।" आत्म-विकास की जो पूर्ण दशा मोक्ष है, वहाँ न जन्म है, न मृत्यु है न रोग और न जरा ।
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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