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________________ दर्शन है सत्यं शिवं सुन्दरं की त्रिवेणी मूल्य-निर्णय की दृष्टियाँ ३ मूल्य - निर्णय की तीन दृष्टियाँ हैं— १. सैद्धान्तिक (theoretical) या बौद्धिक (intellectual) २. व्यावहारिक (pragmatic) या नैतिक (moral) ३. आध्यात्मिक (spiritual ), धार्मिक ( religious ) या पारमार्थिक (transcendental) इन तीन दृष्टियों से 'सत्य', 'शिव' और 'सुन्दर' का मूल्यांकन किया जा सकता है। वस्तुमात्र ज्ञेय है और अस्तित्व की दृष्टि से ज्ञेयमात्र सत्य है । पारमार्थिक दृष्टि से आत्मा की अनुभूति ही सत्य है। शिव का अर्थ है— कल्याण । पारमार्थिक दृष्टि से आत्म-विकास शिव है । व्याहारिक दृष्टि से भौतिक ( पौद्गलिक) साज-सज्जा सौन्दर्य है । सौन्दर्य की कल्पना दृश्य वस्तु में होती है । दृश्य वस्तु रूप, गन्ध, रस और स्पर्श - इन चार गुणों से युक्त होती है । ये वर्ण आदि चार गुण किसी वस्तु में मनोज्ञ ( मनपसंद ) रूप में होते हैं, तो किसी में अमनोज्ञ । इनके आधार पर वस्तु सुन्दर या असुन्दर मानी जाती है । पारमार्थिक दृष्टि से आत्मा ही सुन्दर है । पारमार्थिक दृष्टि से सत्य, शिव और सुन्दर आत्मा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। व्यावहारिक दृष्टि से व्यक्ति सुन्दर नहीं होता, किन्तु आत्म विकास - प्राप्त होने के कारण यह शिव होता है । इसके विपरीत जो शिव नहीं होता, वह कदाचित् व्यावहारिक दृष्टि से सुन्दर हो सकता है । मूल्य - निर्णय की उपर्युक्त तीनों दृष्टियाँ स्थूल नियम हैं । व्यापक दृष्टि से व्यक्तियों की जितनी अपेक्षाएँ होती हैं, उतनी ही मूल्यांकन की दृष्टियाँ हैं । कहा भी हैं— "न रम्यं नाऽरम्यं प्रकृतिगुणतो वस्तु किमपि, प्रियत्वं वस्तूनां भवति च खलु ग्राहकवशात् ।” प्रियत्व और अप्रियत्व ग्राहक की इच्छा के अधीन हैं. वस्तु में नहीं । निश्चय - दृष्टि से न कोई वस्तु इष्ट हैं और न कोई अनिष्ट | " तानेवार्थान् द्विषतः, तानेवार्थान् प्रलीयमानस्य । निश्चयतोऽस्यानिष्टं न विद्यते किंचिदिष्टं वा । "
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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