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________________ आधुनिक चिकित्सा पद्धति में प्रचलित मुद्राओं का प्रासंगिक विवेचन ...83 • ऋतु परिवर्तन के कारण आने वाली तकलीफें दूर हो जाती है। लिंग मुद्रा के साथ सूर्य मुद्रा करने से पाचन शक्ति सक्रिय बनती है और पाचन तन्त्र भी विशेष शक्तिशाली बनता है। ग्रीष्म ताप से अतिरिक्त चर्बी कम होकर शरीर सप्रमाण बन जाता है। • इस मुद्रा के साथ सूर्य मुद्रा का अभ्यास करने पर मासिक स्राव की तकलीफें जैसे समय पर मासिक धर्म न आना, अल्प मात्रा में स्राव होना आदि दूर होती हैं। • यदि नाभि अपने स्थान से हट गई हों तो इस मुद्रा की मदद से वह अपने स्थान पर पुन: आ जाती है। • आध्यात्मिक स्तर पर इस मुद्राभ्यास से पुरुष और महिलाएँ दोनों ही ब्रह्मचर्य व्रत का पालन आसानी से कर सकते हैं। • आत्मा का वीर्यगुण प्रकट होता है जिसका सही उपयोग किया जाए तो कई प्रकार की सिद्धियाँ हासिल हो सकती हैं। • जिस व्यक्ति का पौरुषत्व जागृत रहता है वह किसी भी स्थिति का सहजता से सामना कर सकता है। इस देश में बढ़ रहे अपराध, अत्याचार, अपहरण, बलात्कार जैसी पापवर्द्धक एवं राष्ट्र विनाशकारी वृत्तियों का उन्मूलन कर सकता है। • एक्यूप्रेशर विज्ञान के अनुसार अंगुलियों का वेणीबंध (एक-दूसरे में ग्रथित) करने से शरीर की अधिकांश शक्तियाँ जागृत होती है तथा हथेली के पिछले हिस्से पर दबाव पड़ने से अनेक रोगों का उपशमन होता है। • यह मुद्रा गठिया, सुनेपन, अंगुलियों में दर्द, अर्थराइटिस आदि का निवारण कर हड्डियों को मजबूत भी बनाती है। 18. किड़नी-मूत्राशय मुद्रा शरीर के अंगोपांग की वह आकृति जिसका सीधा असर किडनी एवं मुद्राशय सम्बन्धी स्नायुओं, तंत्रों या नाड़ी संस्थानों पर पड़ता है उसे किड़नीमूत्राशय मुद्रा कहते हैं। विधि किसी भी आरामदायक आसन में बैठ जायें। फिर अनामिका और कनिष्ठिका अंगुलियों के अग्रभागों को अंगूठे के मूलभाग पर स्थिर करें। फिर इन
SR No.006258
Book TitleAdhunik Chikitsa Me Mudra Prayog Kyo Kab Kaise
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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