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________________ 82... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे? निर्देश- 1. इस मुद्रा के सम्यक परिणाम हेतु पद्मासन एवं अर्धपद्मासन सर्वोत्तम कहे गये हैं। अपवादतः सुखासन या वज्रासन भी उपयोगी है। 2. इस मुद्रा को प्रारम्भ से ही एक साथ 48 मिनट तक अथवा सोलहसोलह मिनट करके तीन बार में भी 48 मिनट की अवधि पूर्ण कर सकते हैं। 3. लिंग मुद्रा से शरीर में उष्णता बढ़ती है इसलिए इस मुद्राभ्यास के दौरान शीत गुण वाले पदार्थ जैसे- दूध, घी, छाछ, फल, रस, पानी अधिक मात्रा में लें। ____4. पित्त प्रकृति के रोगियों को यह मुद्रा अधिकारी व्यक्ति के निर्देशानुसार ही करनी चाहिए। यदि अनावश्यक उष्णता बढ़ गई हो तो पित्त प्रकोप बढ़ सकता है। उससे एसीडीटी होना, अम्लता बढ़ना, चक्कर आना, गला सूखना या शरीर में जलन होना आदि संभव है। 5. पेट में अल्सर हो तो इस मुद्रा को न करें। 6. जब तक तकलीफ हो अथवा प्रमादादि दोषों से तन-धन को हानि पहँचती हो, उस समय में ही करें। 7. अन्य संशोधकों के अनुसार लिंग मुद्रा का प्रयोग शरद् ऋतु में अधिक लाभकारी है। उन दिनों शरीर में ताप बढ़ने से कफ के दोष दूर होते हैं, लम्बे समय का जुकाम ठीक हो जाता है, शरीर की अनावश्यक चर्बी जल जाती है जिससे मोटापा कम होता है। सुपरिणाम इस मुद्रा में हाथ की आकृति पुरुष लिंग के सदृश दिखाई देती है अत: इसका नाम लिंग मुद्रा है। यह मुद्रा शिवलिंग जैसी भी प्रतीत होती है इसलिए इसे शिवलिंग मुद्रा भी कहा जाता है। प्रस्तुत मुद्रा में अंगूठा पृथक अस्तित्व के रूप में दिखता है इस कारण अंगुष्ठ मुद्रा यह नाम भी प्रसिद्ध है। .लिंग मुद्रा के प्रभाव से दैहिक स्तर पर शरीर में गर्मी का तापमान बढ़ता है जिससे सर्दी सम्बन्धी सभी तरह के प्रकोप जैसे- खांसी, कफ, जुकाम, सायनस, दमा, अस्थमा, निमोनिया, प्लुरसी, टी.बी. आदि शान्त हो जाते हैं। जब बहुत अधिक ठंड लग रही हो उस समय इस मुद्रा से तुरन्त राहत मिलती है। शरीर में पसीना आ जाये इतनी गर्माहट पैदा हो जाती है।
SR No.006258
Book TitleAdhunik Chikitsa Me Mudra Prayog Kyo Kab Kaise
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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