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________________ 76... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे? वाणी सम्बन्धी किसी तरह की तकलीफ हो उसका सहज निवारण होता है, आवाज मधुर होती है। हकलाना, तुतलाना, लकवे के पश्चात की अस्पष्ट वाणी में भी आशातीत सफलता मिलती है। इसके प्रभाव से धूल या धुँआ की एलर्जी दूर होकर गला साफ होता है। गले के टोनसिल भी समाप्त हो जाते हैं। स्नायु मंडल मजबूत बनता है । प्राकृतिक चिकित्सकों के अनुसार आंत, पेट एवं पेडू के नीचे के भाग के विकार दूर करने के लिए शंख मुद्रा और अपान मुद्रा साथ करनी चाहिए। तेजस केन्द्र (नाभि स्थलीय मणिपुरचक्र) के 72000 नाड़ियों की शुद्धि होती है । अध्यात्म दृष्टि से अनिष्ट तत्त्वों का विसर्जन और इष्ट तत्त्वों का सर्जन होता है। थायरॉइड ग्रन्थि के सन्तुलन से एकाग्रता बढ़ती है, मन:स्थिति संतुलित हो जाती है और मनोबल में अभिवृद्धि होती है । • • एक्युप्रेशर के अनुसार यह मुद्रा बेहोशी, मिरगी, ज्वर, हृदय रोग एवं श्वास सम्बन्धी रोगों में शीघ्र लाभ देती है। • जर्मन देशीय वैज्ञानिकों के अनुसार जिस क्षेत्र विभाग में शंख ध्वनि फैलती है, सुनाई देती है वहाँ थायरॉइड, प्लेग, हैजा आदि रोग निकट भी नहीं आते हैं। ध्वनि तरंगों से वातावरण प्रभावित होता है तदनुसार उस क्षेत्र विशेष में रोगों एवं उपद्रवों का निवारण होता है। शंख मुद्रा के आकार से पांचों तत्त्व अग्नि तत्त्व के साथ संयुक्त होते हैं जिससे तत्सम्बन्धी दोषों का परिहार और अच्छे स्वास्थ्य का निर्माण होता है। 15. सहज शंख मुद्रा जिस मुद्रा में अत्यन्त सरलता से शंखाकृति बनाई जा सकती हो एवं सुगमता पूर्वक अभ्यास किया जा सकता हो उसे आधुनिक संशोधकों ने सहज शंख मुद्रा नाम से व्यवहृत किया है। इस सम्बन्धी आवश्यक वर्णन पूर्ववत समझें। विधि इस मुद्रा के लिए अत्यन्त उपयोगी वज्रासन में बैठ जायें। तत्पश्चात दोनों हाथों की आठों अंगुलियों को एक दूसरे में फँसाकर दोनों हथेलियों को परस्पर दबायें। फिर परस्पर स्पर्शित दोनों अंगूठों को हल्का सा दबाव देते हुए तर्जनी अंगुलियों पर रखना सहज शंख मुद्रा कहलाती है।
SR No.006258
Book TitleAdhunik Chikitsa Me Mudra Prayog Kyo Kab Kaise
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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