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________________ आधुनिक चिकित्सा पद्धति में प्रचलित मुद्राओं का प्रासंगिक विवेचन विधि शंख मुद्रा का त्वरित लाभ हासिल करने के लिए उकडुआसन या समपादासन में बैठें। बाएँ हाथ के अंगूठे को दाहिनी हथेली पर रखकर, दायें हाथ को मुट्ठी रूप में बंद कर दें। बायें हाथ की तर्जनी के अग्रभाग को दाहिने हाथ के अंगूठे के अग्रभाग से मिलायें तथा बायें हाथ की मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका अंगुलियों को दाहिनी हथेली के पीछे की तरफ अंगूठे के पास रखने पर शंख मुद्रा बनती है। निर्देश - 1. शंख मुद्रा का प्रयोग निर्दिष्ट आसन में अथवा सुखासन या वज्रासन में भी किया जा सकता है। 2. प्रारम्भ में यह अभ्यास 16 मिनट तक किया जाना चाहिए। कुछ दिनों के अनन्तर उसे 48 मिनट तक किया जा सकता है। । 3. इस अभ्यास के लिए अहोरात्र का कोई भी समय दे सकते हैं। 4. इस मुद्रा को भलीभाँति समझकर करना चाहिए, क्योंकि थोड़ी सी भी गलत तरीके से हो तो थायरॉइड स्राव में गड़बड़ होने से शरीर अशक्त हो सकता है अथवा शरीर मोटा हो सकता है। यदि ऐसे विपरीत परिणाम का अहसास होने लगे तो मुद्रा का प्रयोग बंद कर दें। 5. हाथ बदलकर भी मुद्रा बनाई जा सकती है। सुपरिणाम ...75 इस मुद्रा में हाथों की आकृति शंख के सदृश होती है। इस मुद्रा के ऊपरी हिस्से में अंगुलियों और अंगूठे के बीच में जो भाग खुला रहता है उसका आकार शंख के मुख जैसा बनता है। मुँह से शंख बजाने पर जैसी ध्वनि निकलती है इस मुद्रा के द्वारा भी बजाने की कोशिश की जाए तो वैसी ही आवाज सुनाई पड़ती है। अत: इसे शंख मुद्रा कहा जाता है । शंखस्वर की ध्वनि से अनेक तरह . के फायदे होते हैं • शारीरिक दृष्टि से देखें तो इस मुद्रा से थायरॉइड ग्रंथि के पाइन्ट दबते हैं जिसके प्रभाव से थायरॉइड रोग दूर होता है। साथ ही थायरॉइड की तकलीफ से होने वाली पुरानी बीमारियाँ भी दूर हो सकती है। • इसके सहयोग से नाभि के पोइन्ट पर दबाव पड़ता है यदि नाभि खिसकी हुई हो तो अपने स्थान में आ जाती है। इस अभ्यास से पाचन तंत्र पर अच्छा असर होता है। परिणामत: गहरी क्षुधा का अनुभव होता है और दोनों आँतों में से पुराने मल का निर्गमन हो जाता है।
SR No.006258
Book TitleAdhunik Chikitsa Me Mudra Prayog Kyo Kab Kaise
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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