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________________ 60... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे? शिथिलता पूर्वक मध्यरेखा की तरफ रखी जाने पर ध्यान मुद्रा बनती है। इसमें बायां हाथ गोद में, हथेली आकाश की ओर तथा उसी तरह दायां हाथ बायें हाथ के ऊपर रहता है। उक्त विधियों में मूल अन्तर अंगूठों को रखने के सम्बन्ध में हैं। प्रथम विधि में द्वयांगुष्ठों को परस्पर स्पर्शित करते हुए हथेली पर रखने का निर्देश है जबकि दूसरी विधि में एक अंगूठे पर दूसरे अंगूठे को रखने का सूचन है। निर्देश- 1. इस मुद्रा के लिए पद्मासन सर्वश्रेष्ठ है। अपवादत: सुखासन या वज्रासन में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। 2. ध्यान करते समय इस मुद्रा का ही उपयोग करें। 3. इस मुद्रा का अभ्यास इच्छानुसार किसी भी समय एक मिनट से पैंतालीस मिनट तक कर सकते हैं। 4. अध्यात्म दिशा की ओर जो अग्रसर होना चाहते हैं वैसे साधकों को प्रतिदिन ध्यान मुद्रा करनी चाहिए। सुपरिणाम • आध्यात्मिक जगत में ध्यान मुद्रा का विशिष्ट स्थान है। यह मूलत: उच्चकोटि का साधनाभ्यास है। इसलिए इस मुद्रा से वैयक्तिक लाभ अधिक मिलते हैं। इस मुद्रा में स्थिर होने पर दीर्घकालिक एकाग्रता का विकास होता है तथा समाधि अवस्था और आत्मसाक्षात्कार जैसे उच्च भूमिका पर आरोहण होता है। इस मुद्रा के प्रभाव से शरीर के चारों ओर एक विशिष्ट कवच का निर्माण होता है जिससे अनिष्ट तत्त्व साधना में बाधक नहीं बन सकते। _ 'जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि' की न्यायोक्ति के अनुसार ध्यान मुद्रा से सात्त्विक विचारों का आविर्भाव होता है जिसके परिणामस्वरूप उस व्यक्ति का आभामंडल (ओरा) तेजोवलय प्रभावशाली और ओजस्वी बनता है। ___ पद्मासन में बैठने पर मेरुदंड सीधा रहता है। जिससे सुषुम्ना नाड़ी का प्रवाह ऊपर की ओर होने लगता है और वह व्यक्ति के विचारों को प्रभावित कर उसे आत्माभिमुखी बनाता है। इस तरह अध्यात्म दिशा की ओर अग्रसर होता है। __ इस मुद्रा में द्वयांगुष्ठों के मिश्रित होने से अग्नि ऊर्जा उत्पन्न होती है जिससे मनोदैहिक सक्रियता जैसे गुणों का विकास होता है। यदि ध्यान काल में इस मुद्रा से अधिक ऊर्जा का अनुभव हो तो दोनों अंगूठों को एक-दूसरे से न मिलाते हुए एक अंगूठे पर दूसरे अंगूठे को रख सकते हैं। इस तथ्य के परिप्रेक्ष्य में पूर्व
SR No.006258
Book TitleAdhunik Chikitsa Me Mudra Prayog Kyo Kab Kaise
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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