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________________ भगवान बुद्ध की मुख्य 5 एवं सामान्य 40 मुद्राओं की......65 विशेष परिभ्रमण किया होगा इसलिए अमुक जंगल विशेष का सूचन किया गया है। यह संयुक्त मुद्रा प्रलम्ब पदासन मुद्रा में की जाती है। विधि ___दायी हथेली ऊर्ध्वाभिमुख, अंगुलियाँ हल्की सी झुकी हुई, अंगूठा हल्के से अंगुलियों के अग्रभाग की तरफ मुड़ा हुआ और हाथ दाहिने घुटने पर रहे। बायां हाथ नीचे की तरफ और अंगुलियाँ फैली हुई रहने पर 'पेंग् पलेलै' मुद्रा बनती है।23 इसमें बायां हाथ कुर्सी पर या गोद में सोया हुआ रहेगा। सुपरिणाम • इस मुद्रा का प्रयोग अग्नि एवं जल तत्त्व का संतुलन करता है। इससे रक्त, वीर्य, लसिका, मल-मूत्र, पसीना, कफ आदि से संबंधित समस्याओं का समाधान होता है। इससे शारीरिक एवं स्वाभाविक रूखापन भी दूर होता है। • मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र को प्रभावित कर यह मुद्रा अग्नि एवं जल तत्त्व का संतुलन करते हुए पाचन सम्बन्धी विकृतियों का शमन करती है तथा गैस, अपच, मधुमेह, कब्ज आदि को दूर कर पेट सम्बन्धी अवयवों के कार्य का नियमन करती है। • तैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा रक्त परिसंचरण, रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास, भूख, पसीना, रक्तचाप, कमजोरी, शारीरिक एलर्जी आदि को दूर करती हैं। • एक्युप्रेशर प्रणाली के अनुसार यह मुद्रा पित्ताशय, लीवर, प्राणवायु के संतुलन, शर्करा, पाचन आदि में कार्यकारी होती है तथा नाभिचक्र सम्बन्धी समस्याएँ जैसे- दस्त, कब्ज, हर्निया आदि में लाभ पहुँचाती है। 21. पेंग्-हम्-फ्रा-काएँ-चन् मुद्रा (स्वर्ग से लौटने की मुद्रा) __ यह मुद्रा भारत में 'लोलहस्त अभय मुद्रा के नाम से धारण की जाती है। भगवान बुद्ध की 40 मुद्राओं में से यह इक्कीसवीं मुद्रा है। यह मुद्रा बुद्ध के तवतिमसा नामक स्वर्ग से लौटते समय एक चंदन की प्रतिभा से मिलने की सूचक है। इस मुद्रा वर्णन से यह ज्ञात होता है कि भगवान बुद्ध निश्चित रूप से स्वर्ग लोक में गये और वहाँ से पुन: मृत्युलोक में पधारे।
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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