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________________ श्रुत अर्जन के अविस्मृत सहभागी श्री प्रकाशचन्दजी लोढ़ा, जयपुर सम्पूर्ण भारत वर्ष में अपनी कलात्मकता, सांस्कृतिक संपदा एवं रत्नों के लिए प्रसिद्ध गुलाबी नगरी जयपुर का विविध क्षेत्रों में अपना विशिष्ट योगदान है। राजस्थान की यह राजधानी जहाँ विदेशी यात्रियों के लिए आकर्षण का केन्द्र है वहीं महिलाओं के लिए नाना-विध खरीदारियों का परंतु अध्यात्म जिज्ञासुओं के लिए तो यह भूमि तीर्थ रूप ही है। इस पुण्यभूमि के निवासी हैं उन्नत व्यक्तित्व के धनी श्रीमान प्रकाशचंदजी लोढ़ा। अपने नाम के अनुरूप आंतरिक प्रभा से प्रकाशित लोढ़ाजी जयपुर के सुप्रसिद्ध श्रेष्ठी हैं। आपका जन्म अपने ननिहाल किशनगढ़ में हुआ। माता-पिता ने आपके जीवन को सत्संस्कारों से प्रकाशित करने में कोई कमी नहीं रखी। धर्मनिष्ठा मातुश्री रतन देवी ने आपको धर्म की बूंटी पिलाई तो पिताश्री फतेहचंदजी ने कर्मक्षेत्र में उच्च शिखर पर पहुँचाने के सपने ही नहीं संजोए अपितु वैसी शिक्षा-दीक्षा भी दी और आपके प्रेरणा सूत्र भी बने। आपने अपने दम पर जयपुर में जवाहरात का व्यापार प्रारंभ किया और आज उस क्षेत्र में उच्च स्थान पर हैं। एक माँ पुत्र जन्म के पश्चात अपने आपको कब धन्यतम मानती है? इसका वर्णन करते हुए किसी कवि ने कहा है जननी जनिए भक्तजन, के दाता के शूर । नहीं तो रहीजे बांझणी, मत गंवाईजे नूर ।। इस दोहे में वर्णित एक गुण से युक्त पुत्र की माता भी धन्य हो जाती है जबकि आप में तीनों ही गुण परिलक्षित होते हैं। जिन शासन के प्रति अगाध अहोभाव एवं समर्पण, गुरुजनों के प्रति आंतरिक भक्ति एवं सेवाभाव तथा साधर्मिक वर्ग के प्रति सम्मान एवं समुत्थान की इच्छा ने
SR No.006255
Book TitleHindu Mudrao Ki Upayogita Chikitsa Aur Sadhna Ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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