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________________ उपसंहार ...347 हो या पूजा-उपासना। हर क्रिया के लिए कुछ विशिष्ट मुद्राओं का उल्लेख जैनाचार्यों द्वारा किया गया है। इन मुद्राओं से कार्य सिद्धि में सहायता तो प्राप्त होती ही है साथ ही साथ दैहिक स्वस्थता, वैचारिक उर्ध्वता एवं अनेकानेक सकारात्मक सुपरिणामों की भी प्राप्ति होती है। परंतु हमारा दुर्देव है कि अधिकांश आराधक वर्ग इन सबसे अज्ञात रहते हुए मात्र परम्परा निर्वाह या अंधानुकरण करने के कारण इन मुद्राओं का यथोक्त परिणाम प्राप्त नहीं कर पाते। अनेकशः लोग तो इनकी सम्यक विधि से ही अनभिज्ञ होते हैं। सम्यक जानकारी के अभाव में इन क्रिया विधियों के प्रति श्रद्धा भाव उत्पन्न ही नहीं होते। ध्यान और प्राणायाम के समान ही मुद्रा प्रयोग रोग उपशान्ति का प्रमुख उपाय है। Personal Development और Body maintianence के लिए मुद्रा प्रयोग अचुक उपाय है। इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए जैन धर्म ग्रन्थों में प्राप्त अबतक की सभी मुद्राओं का सचित्र स्वरूप वर्णन किया है। साथ ही साथ विभिन्न परिप्रेक्ष्यों में इसके लाभ एवं इनके पीछे छिपे हुए रहस्यमयी हेतुओं को भी उजागर किया। जैन धर्म की वैज्ञानिकता मिश्रित आध्यात्मिकता का यह सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। इस कृति के उद्देश्य पूर्ति एवं सार्थकता तभी होगी जब सुधि वर्ग के मन में मुद्रा प्रयोग के प्रति जागरूकता आएगी। आशा है कि इस पुस्तक के पठन के बाद क्रिया-कांड को निरर्थक एवं अप्रासंगिक मानने वाले युवा चेतना के भीतर जिनधर्म के प्रति अनुराग वृद्धि एवं जन सामान्य में विधि-विधानों के लिए सचेष्टता की अभिवृद्धि होगी।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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