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________________ 346... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा असफलता, अल्पज्ञान, स्मृति समस्या, मानसिक विकार आदि : अस्त्र मुद्रा, ध्वज मुद्रा, शूल मुद्रा - 1, चक्र मुद्रा, परशु मुद्रा - 1, यथाजात मुद्रा, आरात्रिक मुद्रा । उन्मत्तता, अवषाद, मृत्युभय, निराशा, आनंद की कमी, अनुत्साह, अखुशहाल जीवन : हृदय मुद्रा, ध्वज मुद्रा, संहार मुद्रा - 2, पद्म मुद्रा, पताका मुद्रा, सौभाग्य मुद्रा आध्यात्मिक रोगों के निदान में प्रभावी मुद्राएँ क्रोध, मान, माया, लोभ, बाचालता, भय, ईर्ष्या, प्रमाद आदि : कुम्भ मुद्रा, मुक्तासुक्ति मुद्रा, नाद मुद्रा, गदा मुद्रा, यथाजात मुद्रा, वीर मुद्रा, परशु मुद्रा, छत्र मुद्रा । सप्तव्यसन की लत, चंचलता, कामुकता, अभिमान : शूल मुद्रा - 1, जिन मुद्रा, नाद मुद्रा, कमण्डलु मुद्रा, प्रार्थना मुद्रा, प्रियंकरी मुद्रा, खड्ग मुद्रा। आत्म बल की कमी, एकाग्रता की कमी, शंकालु वृत्ति आदि : स्थापनी मुद्रा, अवगुण्ठन मुद्रा, संहार मुद्रा - 1, मंगल मुद्रा, चक्र मुद्रा, गदा मुद्रा, मुद्गर मुद्रा, वीर मुद्रा, परशु मुद्रा, छत्र मुद्रा। वाणी पर नियंत्रण, असंवेदनशीलता, हिंसक भावना आदि : कमण्डलु मुद्रा, परशु मुद्रा, सर्प मुद्रा, मुद्गर मुद्रा, आरात्रिक मुद्रा, प्रार्थना मुद्रा, शंख मुद्रा, सौभाग्य मुद्रा, वृक्ष मुद्रा । ज्ञान का अभिमान, मायाचारी, अनुत्साह, अंधी श्रद्धा, सम्यक रुचि का अभाव : ध्वज मुद्रा, शूल मुद्रा-2, चक्र मुद्रा, परशु मुद्रा - 1, यथाजात मुद्रा, आरात्रिक मुद्रा, वीर मुद्रा, सामान्य पद्म मुद्रा, योग मुद्रा, अस्त्र मुद्रा-2, महा मुद्रा, शंख मुद्रा, वापी मुद्रा, नाद मुद्रा, परमेष्ठी मुद्रा, महा मुद्रा। मुद्रा और मानव का सम्बन्ध अनादिकाल से रहा हुआ है। मानव के द्वारा बनाई जाने वाली विभिन्न आकृतियाँ एवं भाव भंगिमाएँ योग की भाषा में मुद्रा कहलाती है। जैन धर्म में आगम काल से ही मुद्राओं का उल्लेख प्राप्त होता है एवं इनकी संख्या में क्रमशः विकास ही देखा जाता है। प्रत्येक धार्मिक आराधना में मुद्राओं का विशेष स्थान है। चाहे प्रतिक्रमण
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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