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________________ मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ 79. प्रणिपात मुद्रा ...309 यह मुद्रा विधिमार्गप्रपा की मुद्रा नं. 58 के समान है। इस मुद्रा का प्रयोग क्रोधादि कषायों की उपशान्ति निमित्त एवं राजामहाराजा आदि के मिलन के अवसर पर किया जाता है। इसका बीज मन्त्र 'ज' है। 80. योनि मुद्रा इस मुद्रा का स्वरूप विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्रा नं. 53 के समान है। यह रहस्यमयी मुद्रा जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा में नासिका न्यास के अवसर पर, लिंग स्थान न्यास के अवसर पर और किसी को वश में करने के निमित्त की जाती है। इसका बीज मन्त्र 'झ' है। 81. त्रिमुख मुद्रा इस मुद्रा का स्वरूपं विधिमार्गप्रपा में वर्णित मुद्रा नं. 59 के समान है। मुनि ऋषिगुणरत्नजी के अनुसार देवालय की प्रतिष्ठा और त्रिमुखी रूद्राक्ष की प्रतिष्ठा के प्रसंग पर त्रिमुख मुद्रा दिखायी जाती है। इसका बीज मन्त्र 'ञ' है। 82. योगिनी मुद्रा इस मुद्रा का स्वरूप विधिमार्गप्रपा में वर्णित मुद्रा नं. 61 के तुल्य है। योगिनी मुद्रा का प्रयोग महामारी उपद्रव का अपनयन करने हेतु किया जाता है। इस मुद्रा का बीज मन्त्र 'ट' है। 83. डमरूक मुद्रा डमरूक मुद्रा विधिमार्गप्रपा में वर्णित मुद्रा नं. 63 के सदृश है। यह मुद्रा अशुभ उपद्रव का निवारण करने और दृष्टि दोष को दूर करने निमित्त की जाती है । इसका बीज मन्त्र 'ठ' है। 84. क्षेत्रपाल मुद्रा यह मुद्रा विधिमार्गप्रपा उल्लिखित मुद्रा नं. 62 के समान है। यह मुद्रा आत्मरक्षा के लिए, चातुर्मास में स्थिरावास के लिए, नूतन में प्रवेश के अवसर पर और जिनालय प्रवेश के अनन्तर की जाती है। क्षेत्र
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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