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________________ 296... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा 50. भंगार मुद्रा __ इस मुद्रा का स्वरूप विधिमार्गप्रपा में कथित मुद्रा नं. 60 के तुल्य है। यह कलश मुद्रा की प्रकारान्तर मुद्रा है। यह मुद्रा ध्वजा, प्रतिष्ठा, स्नात्र पूजा आदि प्रमुख कार्यों एवं जिन बिम्बों के अभिषेक के अवसर पर प्रयुक्त होती है। इसका बीज मन्त्र 'ष' है। 51. अस्त्र मुद्रा इस मुद्रा का स्वरूप विधिमार्गप्रपा में उपदिष्ट मुद्रा नं. 8 के समान है। __ अस्त्र मुद्रा का प्रयोग हृदयादि का न्यास करने, परचक्र का निवारण करने और शत्रुओं का उच्चाटन करने के निमित्त किया जाता है। इसका बीज मन्त्र ‘स' है। 52. धेनु मुद्रा यह मुद्रा विधिमार्गप्रपा में वर्णित मुद्रा नं. 10 के समान है। जहाँ भूमि शुद्धि और इर्द-गिर्द के वातावरण को पवित्र बनाना हो, सर्वत्र शांतिक यंत्र की स्थापना करनी हो, वहाँ पूर्व में धेनु मुद्रा करते हैं। इसका बीज मन्त्र 'ह' है। 53. प्रतिमा मुद्रा दोनों हाथों की वह संरचना, जिसमें प्रतिमा की बिंब रूप आकृति दिखाई देती हो, उसे प्रतिमा मुद्रा कहते हैं। इस मुद्रा में परमात्मा की प्रतिमा जैसा प्रतिबिम्ब निर्मित होता है। प्रस्तुत मुद्रा दिखाने से नवीन बिम्बों का अतिशय बढ़ता है तथा प्रतिष्ठा मंडप अलौकिक विशेषताओं से युक्त हो उठता है। प्राचीन परम्परा के अनुसार नतन प्रतिमाओं के उद्देश्य से बनाए गए प्रतिष्ठा मंडप में यह मुद्रा प्रारंभ में ही कर लेनी चाहिए। नवीन बिम्बों के मन्त्र न्यास के अवसर पर आचार्य या अधिकारी मुनि स्वयं प्रतिमा मुद्रा करके उन्हें दिखाते हैं। इसका बीज मन्त्र 'अं' है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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