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________________ विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......151 57. मुक्ताशुक्ति मुद्रा मुक्ता अर्थात मोती, शुक्त अर्थात सीप। जैन ग्रन्थों के अनुसार सीप दो इन्द्रिय वाला सूक्ष्म जन्तु है। वह सामुद्रिक जल में उत्पन्न होता है। सीप के भीतर मोती की उत्पत्ति होती है। इस मुद्रा को करते वक्त हाथों की आकृति सीप के समान बनती है, इसलिए इसे मुक्ताशुक्ति मुद्रा कहते हैं। ___ अर्हत् परम्परा में मुक्ताशुक्ति मुद्रा का अत्यन्त महत्त्व है। विशेष तौर पर परमात्मा के दर्शन करते हुए इस मुद्रा का उपयोग होता है। जयवीयराय नाम का सूत्र इसी मुद्रा में बोला जाता है। अध्यात्म ज्योतिष के अनुसार मोती चन्द्र ग्रह का कारक तत्त्व है। चन्द्र शीतलता का प्रतिनिधि है। इस मुद्रा के माध्यम से मोती का स्मरण करने पर साधक के परिणाम शीतल एवं, शान्त बनते हैं। मोती शुभ्रता-उज्ज्वलता का द्योतक है। अत: इस मुद्रा के प्रयोग से साधक का मन शुभ्र, निर्मल एवं उज्ज्वल बनता है। मुक्ताशुक्ति मुद्रा
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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