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________________ प्रतिष्ठा सम्बन्धी आवश्यक पक्षों का मूल्यपरक विश्लेषण ... 29 2. तीर्थंकर प्रभु की दीक्षा कल्याणक के दिन माता-पिता, भाई-बहिन, इन्द्रइन्द्राणी एवं समस्त प्रजाजनों को उपवास करना चाहिए । 3. अंजन चूर्ण कुमारिकाओं द्वारा पिसवाना चाहिए। 4. अठारह अभिषेक में प्रयुक्त औषधियों का चूर्ण मन्दिर के परिसर में तैयार किया जाना चाहिए। 5. बारह व्रतधारी अथवा कम से कम सप्त व्यसन के त्यागी, रात्रिभोजन से विरत एवं देव-गुरु-धर्म की आराधना में निरत गृहस्थ को भगवान का माता-पिता बनना चाहिए। 6. उच्च कुलीन एवं सुसंस्कारी युवतियों तथा बालिकाओं के द्वारा छप्पन दिक्कुमारी का दृश्य उपस्थित किया जाना चाहिए। 7. प्रतिष्ठा के प्रत्येक विधान में स्नात्रकार शुद्ध वस्त्रों में होने चाहिए। 8. विधिकारकों को सब कुछ प्रतिष्ठाचार्य से पूछकर करना चाहिए। 9. प्रतिष्ठा के सभी कार्यों में क्रियाकारक एवं प्रतिष्ठाकारक के अध्यवसायों में शुद्ध भावों की अभिवृद्धि होती रहनी चाहिए। ऐसी ही कई महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ हैं जिनके प्रति जागरूक रहना अत्यावश्यक है। अञ्जनशलाका-प्रतिष्ठा उत्सव के प्रारम्भिक कृत्य नवनिर्मित जिनालय में जिनप्रतिमा को विराजमान करने से पहले उसकी अंजनशलाका एवं प्राण प्रतिष्ठा आदि विधियाँ सम्पन्न करना आवश्यक है। उसके बाद ही नवीन बिम्बों की प्रतिष्ठा की जाती है। प्रतिष्ठा करवाने की भावना रखने वाला श्री संघ अथवा पुण्यशाली परिवार यह ध्यान रखे कि उन्हें निम्न कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए अंजनशलाका - प्रतिष्ठा का महामांगलिक महोत्सव प्रारम्भ करना चाहिए। प्रतिष्ठा कल्पकारों ने प्रतिष्ठा उत्सव से सम्बन्धित बारह कर्तव्य बतलाये हैं उनका सामान्य वर्णन इस प्रकार है 1. मुहूर्त निर्णय 2. राज्यपृच्छा 3. भूमि शुद्धि 4. मण्डप निर्माण 5. वेदिका रचना 6. श्रीसंघ भक्ति 7. श्री संघ निमन्त्रण पत्रिका 8. औषधि घोटने वाली चार सुलक्षण सन्नारियाँ 9. प्रतिष्ठाचार्य का स्वरूप 10 स्नात्रकार इन्द्र का स्वरूप 11. अमारि उद्घोषणा 12. प्रतिष्ठा उपयोगी सामग्री का संचय और श्रद्धाशील स्नात्रकारों की नियुक्ति ।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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