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________________ 28... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन होती है। जितनी शुद्धि प्रतिष्ठा विधि की आवश्यक है इससे भी कई गुणा अधिक प्रतिष्ठाचार्य में सात्विकता होनी चाहिए। एकाग्रता, निर्भीकता और कार्यदक्षता से ही प्रतिष्ठा सफल होती है। प्रतिष्ठा की सफलता के लिए समय की सतर्कता और सूक्ष्मातिसूक्ष्म क्रिया में भी दत्तचित्त होना आवश्यक है। सही महर्त में हई प्रतिष्ठा परिवार-समाज-गाँव-राष्ट्र और विश्व का कल्याण करने वाली होती है। एक मंदिर की प्रतिष्ठा वर्षों का इतिहास लिखती है। एक तीर्थ की प्रतिष्ठा युग-युग की गौरवगाथा होती है। अतः प्रतिष्ठाचार्य का भी समर्थ और गुणसम्पन्न होना अति आवश्यक है क्योंकि समग्र प्रतिष्ठा विधि और प्रतिष्ठा महोत्सव की आधारशिला प्रतिष्ठाचार्य होते हैं। सामान्यतः एक प्रतिष्ठाचार्य में गुरुकुलवास, ज्ञान प्रतिभा, श्रुत ज्ञान, अनुभव ज्ञान, वक्तृत्व शक्ति, भाषा ज्ञान, कार्यदक्षता, सहज सूझबूझ, संचालन सामर्थ्य, मिलनसारिता, सात्विकता, निर्णायक शक्ति, उदार विचारधारा, सहिष्णुता, आग्रहरहितता आदि गुणों का होना आवश्यक है। जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा कब की जानी चाहिए? जिनबिम्ब घड़कर तैयार हो जाये, उसके पश्चात दस दिन के अन्तराल में उसकी प्रतिष्ठा कर देनी चाहिए, ऐसा पूर्वाचार्यों का अभिमत है। यहाँ दस दिन के भीतर प्रतिष्ठा करने का जो निर्देश दिया गया है उसका रहस्य यह है कि कोई भी अच्छी वस्तु मालिक के अधिकार की न हो तो वह बहुत जल्दी व्यंतर-वाणव्यंतर आदि देवों से अधिष्ठित हो जाती है। इस दोष से बचने के लिए ही दस दिन के अन्दर प्रतिष्ठा कर देनी चाहिए। यदि दस दिन का उल्लंघन हो जाए तो अशुभता का निवारण करने के लिए एक विशिष्ट विधि करनी पड़ती है। इसलिए प्रतिमा के तैयार हो जाने पर दस दिन के भीतर ही प्राण प्रतिष्ठा हो जानी चाहिए। यहाँ प्रतिष्ठा का अभिप्रेत अंजनशलाका (पंच कल्याणक) विधि है केवल मूल गादी पर आसीन करना नहीं है।' सुप्रतिष्ठा के लिए आवश्यक तत्त्व जिनेश्वर प्रभु की प्रतिष्ठा, सुप्रतिष्ठा के रूप में फलदायी हो उसके लिए कुछ ऐसे विशिष्ट तत्त्व हैं जिन्हें आज अनदेखा किया जा रहा है1. सर्वप्रथम कुंभ स्थापना, कुंभ जलयात्रा, औषधि पिष्टपेषण आदि कृत्य सौभाग्यवती महिलाओं (जिसके माता-पिता, सास-ससुर जीवित हैं और जो पुत्रवती भी हैं) के द्वारा होने चाहिए।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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